शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

आगे बढ़ो बाबा !

एक हाथ में लाठी ठक-ठक,
और एक में,
सत्य, अहिंसा तथा धर्म का,
टूटा-फूटा, लिए कटोरा.
धोती फटी सी, लटी दुपटी,
अरु पायं उपानहिं की, नहिं सामा,
राजा की नगरी फिर आया,
बिना बुलाए एक सुदामा.
बतलाता वो ख़ुद को, बापू,
जिसे भुला बैठे हैं बेटे,
रात किसी महफ़िल में थे वो,
अब जाकर बिस्तर पर लेटे.
लाठी की कर्कश ठक-ठक से,
नींद को उनके, उड़ जाना था,
गुस्ताख़ी करने वाले पर,
गुस्सा तो, बेशक़ आना था.
टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की दे कर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.
बाबा लौटा ठक-ठक कर के,
नयन कटोरों में जल भर के,
अपने सब अब हुए बेगाने,
लगा हर कोई पाप गिनाने.
भारत दो टुकड़े करवाया,
शत्रु-देश को धन दिलवाया,
नाथू जैसे देश-रत्न को,
मर कर फांसी पर चढ़वाया.
राष्ट्रपिता कहलाता था वह,
राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,
बहुत दिनों गुमराह किया था,
कलई खुल गयी वापस जाए.
विश्व उसे जानता नहीं है,
देश उसे मानता नहीं है,
उसकी राह पे चलने का प्रण,
अब कोई ठानता नहीं है.
बाबा अति प्राचीन हो गया,
पुरातत्व का सीन हो गया,
उसे समझना मुश्किल है अब,
भैंस के आगे बीन हो गया.
नई ऊर्जा मिली राष्ट्र को,
ख़ुशहाली मिल गयी राष्ट्र को,
नव-भारत का उदय हुआ है,
नया पिता मिल गया राष्ट्र को.
नया पिता मिल गया राष्ट्र को.
नया पिता मिल गया राष्ट्र को.

13 टिप्‍पणियां:

  1. 'लाजवाब' के लिए धन्यवाद मित्र !
    ऐसा पिता मिलने से तो हम अनाथ ही भले हैं.

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-10-21) को "दो सितारे देश के"(चर्चा अंक-4206) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा


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  3. 'दो सितारे देश के' (चर्चा अंक - 4206) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी.

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  4. बहुत मारक और मर्मान्तक व्यंग्य है आदरणीय गोपेश जी। बापू की छवि धूमिल करने को आतुर ना जाने कितने खेमे सक्रिय हैं। राजनैतिक रोटी सेक रहे प्रबुद्धजन इतिहास को कुछ सालों में नए रंग से रंग दें तो कोई आश्चर्य न होगा। बापू सम्मान को कम करने की कोशिश करने वाले खुद अपना सम्मान कम कर रहे हैं, वे नहीं जानते।🙏🙏

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  5. बाबा अति प्राचीन हो गया,
    पुरातत्व का सीन हो गया,
    उसे समझना मुश्किल है अब,
    भैंस के आगे बीन हो गया.
    वैसे नए पिता से परिचित नहीं हूं अब तक 😕

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    1. रेणुबाला, बापू को भुलाने वाले अब देश संभाल रहे हैं. मैं गांधी का भक्त नहीं हूँ लेकिन इतना ज़रूर मानता हूँ कि वह एक ऐसा शख्स था जिसने कि अपने मुल्क को, इंसानियत को और सच्चाई को, बड़ी शिद्दत से प्यार किया था.
      तुम नए राष्ट्रपिता से परिचित क्यों नहीं हो?
      आजकल टीवी, रेडियो, अखबार में कौन छाया रहता है?

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  6. बहुत शानदार रचना,आज के समय में जो हो रहा है,उसके बारे में सटीक कथन है आपका ।

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    1. जिज्ञासा, हमारे जैसे आज इतिहास पढ़ाने के लायक़ नहीं रह गए हैं और न ही गांधी जैसे इतिहास के पन्नों में रहने लायक़ रह गए हैं.

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