मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

कलम ! न तू, उनकी जय बोल !

महाकवि दिनकर से क्षमा-याचना के साथ -
राज्यसभा के रत्न, उड़ चले,
बिना चुकाए ऋण-अनमोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
देशभक्ति का जो प्रमाण दें,
स्विस बैंकों में खाते खोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
बत-रस में जो सदा मिलावें,
छल-प्रपंच का मीठा घोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल.
फांसी लटकें लाख कृषक पर,
कभी न होवें, डांवाडोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
काला धन लाएंगे वापस,
खोल गए कह अपनी पोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
धर्म-जाति पर सर फुटवाएँ,
जिह्वा किन्तु एकता-बोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
नित-नित करें लुभावन वादे,
अमल में करते टालमटोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
भारत माता, राम, गाय को,
बेचें बिना तराजू-तोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !

14 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा ! मूल-कविता की भावना से सर्वथा विपरीत यह कविता देश को खोखला कर रहे दीमक-रूपी नेताओं को समर्पित है.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच         "कलम ! न तू, उनकी जय बोल"     (चर्चा अंक4229)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. मेरी व्यंग्य-रचना को 'कलम न तू, उनकी जय बोल' (चर्चा अंक- 4229) में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  3. वाह!!!
    समसामयिक सटीक एवं लाजवाब।

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    1. सुधा जी, सटीक तो महाकवि दिनकर ने कहा है.
      मैंने तो उस ओर संकेत किया है जो कि सटीक नहीं है.

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  4. वाह बहुत ही बेहतरीन और उम्दा रचना
    भले ही आपने महाकवि दिनकर जी की रचना का नकल किया है पर सभी शब्द,भाव और आक्रोश आपके अपने हैं,इसलिए अगर दिनकर जी होते भी तो कभी बुरा नहीं मानते बात के लिए और आपको क्षमा याचना की बात ही नहीं करनी पड़ती!

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  5. वाह!गज़ब लिखा सर।
    सराहनीय सृजन।
    सादर प्रणाम।

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  6. सामायिक परिप्रेक्ष्य में सटीक आह्वान कलमकारों को।
    अभिनव भाव।

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    1. ऐसी उदार टिप्पणी के लिए धन्यवाद कुसुम जी.
      आज दिनकर जी होते तो उनकी कलम किसी तथाकथित देशभक्त के लिए जय कैसे बोल पाती?

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