गुरु जी - बच्चों तुमको उज्जवल नगर से जुड़ी एक प्राचीन नीति-कथा सुनाता हूँ.
उज्जवल नगर के राजा के
दरबार में तीन चोर पेश किये गए.
उन तीनों ने राजा के
कोषागार में चोरी की थी पर वहां से भागते समय पकड़े गए थे.
पहला चोर राजा का अपना ही
बेटा, अर्थात
उज्जवल नगर का राजकुमार था.
दूसरा चोर उज्जवल नगर राज्य
के मंत्री का बेटा था.
तीसरा चोर एक पेशेवर चोर का
बेटा था.
अब देखो राजा का न्याय !
राजा ने अपने बेटे अर्थात
राजकुमार को देख कर चोर पकड़ कर लाने वालों से कहा -
तुम लोगों को ग़लतफ़हमी हो
गयी है. मेरा बेटा चोरी कर ही नहीं सकता. मैं इसे बाइज़्ज़त बरी करता हूँ.
दूसरे चोर अर्थात मंत्री के
पुत्र को राजा ने केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया.
तीसरा चोर जो कि एक पेशेवर
चोर का बेटा था, उसको
राजा ने 100 कोड़े
लगवाए तब जा कर उसे छोड़ा गया.
अगले दिन निर्दोष घोषित किए
गए राजकुमार ने आत्मग्लानि के कारण आत्महत्या कर ली.
चेतावनी देकर मुक्त किया
गया मंत्री-पुत्र लज्जित होकर खुद देश छोड़ कर चला गया.
तीसरा चोर अगले दिन ही फिर
चोरी करते हुए पकड़ा गया.
तो बच्चों ! उज्जवल नगर
राज्य के राजा ने एक ही अपराध के लिए इन अपराधियों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया
क्योंकि वह जानता था कि इनके संस्कार, इनके चरित्र एक-दूसरे से भिन्न हैं.
अब बताओ, कैसा
लगा तुम्हें राजा का न्याय?
एक सयाना बालक -
गुरूजी,
आपने जो कथा सुनाई है उसके प्रारंभ में हक़ीक़त है और बाद में फ़साना
है यानी कि आपने कहानी के इंटरवल तक हमको सच्ची कथा सुनाई है लेकिन बाद में आप ने
उसको अपने ढंग से मोड़ दिया है.
असल में इंटरवल के बाद की
कहानी कुछ यूँ है -
हम जानते हैं कि हर राजा
अपने चोर बेटे को निर्दोष घोषित करता है, अपने ख़ास लोगों के बच्चों के घपलों की भी अनदेखी करता है
और गरीब पर ही उसका डंडा चलता है.
वास्तव में यह कथा उज्जवल
नगर की नहीं है बल्कि अंधेर नगरी की है.
अंधेर नगरी के राजा ने भी
चोरी के अपराधी राजकुमार को बाइज्ज़त बरी कर दिया था और मंत्री के पुत्र को केवल
चेतावनी दे कर छोड़ दिया था.
यह भी सही है कि उसने
पेशेवर चोर के बेटे को सौ कोड़े लगवा कर ही मुक्त किया था.
लेकिन अंधेर नगरी राजा के
न्याय के परिणाम की कहानी आपके द्वारा बताई गयी उज्जवल नगर के राजा के न्याय के
परिणाम की कहानी से बिलकुल भिन्न है.
राजा के न्याय के परिणाम की
असल कहानी कुछ यूँ है -
निर्दोष घोषित किए गए
राजकुमार ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि वह साधु हो गया था और फिर उसने अपना
उद्योग स्थापित किया जिसमें कि अधिकतर चीन ,जापान,
कोरिया आदि का सस्ता और घटिया माल अपना लेवल लगा कर ऊंचे दामों में
बेचा जाता था.
इस उद्योग का सालाना टर्न
ओवर एक लाख करोड़ का था. बड़ी-बड़ी बहुदेशीय विदेशी कंपनियां तक उसकी कंपनी के सामने
पानी भरती थीं.
चेतावनी देकर मुक्त किए
जाने वाले मंत्री-पुत्र ने देश ज़रूर छोड़ा था पर वह विदेश जा कर हवाला व्यापार करने
लगा था.
सभी देशभक्त नेता उसके
क्लाइंट्स थे और उनके स्विस-बैंक खातों का सारा लेन-देन उसी की देखरेख में होता
था.
जानकारों का कहना था कि 50 एम०
पी० तो उसकी मुट्ठी में रहते थे.
और रहा तीसरा चोर जिसको कि
राजा ने 100 कोड़े
लगवाए थे, उसने
राजनीति में प्रवेश कर अपार धन,
ए० के० 47
और ए० के० 56
का अतुलित भंडार एकत्र कर, एक उपद्रवी सेना संगठित की थी जिसके बल पर उसने पुराने
राजा का तख्ता पलट दिया था.
वही पेशेवर-खानदानी चोर अंधेर नगरी का राजा बना.
मज़े की बात यह थी कि ख़ुद
राजकुमार ने राजा का अर्थात अपने पिता का, तख्त पलटने में अपने पुराने साथी, उस
पेशेवर चोर का साथ दिया था.
इस घर के भेदी को नए राजा ने गृहमंत्री बना दिया.
विदेश में रह कर हवाला किंग
के रूप में नाम कमाने वाले और स्विस-बैंकों में देशभक्तों के खातों का कुशल संचालन
करने वाले मंत्री-पुत्र ने इस तख्त-पलटी के लिए अपने चोर मित्र को अरबों रूपये की
धन-राशि उपलब्ध कराई थी.
नए राजा ने सत्ता सँभालते ही अपने इस मददगार को विदेश मंत्री बना दिया.
ये तीनों पुराने चोर, देश की सेवा के नाम पर मिल कर चोरी करते रहे और मिलजुल कर ही देश को बरसों तक 24X7 लूटते रहे.
लाजवाब
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया दोस्त !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-3-22) को "घर में फूल की क्यारी रखना.."(चर्चा-अंक 4382)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
'घर में फूल की क्यारी रखना' (चर्चा-अंक 4382) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.
हटाएंवाह! लाज़वाब।
जवाब देंहटाएंआपने उनका कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
वाह!
धन्यवाद अनीता.
हटाएंदेशभक्तों के सारे कच्चे-चिट्ठे अगर खुल जाएं तो उनका वर्णन करने में दुनिया भर के कागज़, कलम और दवात कम पड़ जाएंगे.
कटु सत्य
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिता जी.
हटाएंकटु-सत्य का निस-दिन विषपान करते-करते हम सब शंकर भगवान जैसे हो गए हैं पर कोई भी हमारी पूजा नहीं करता.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंराजनीतिक कुचक्र की बदसूरती से भरी इस कथा को - 'बहुत सुन्दर' कहने के लिए धन्यवाद मित्र !
हटाएंधार दार !
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही आप बाल की खाल निकालते रहें सर हम शायद व्यवस्था के विरुद्ध कुछ कर तो नहीं पायेंगे पर ऐसा जरूर लगेगा हम जीवित तो हैं कि हर एहसास को महसूस तो कर लेते हैं आपके शानदार तंज और सटीक व्यंग्य से।
अप्रतिम।
कुसुम जी, जिस गरीब के सर पर बाल ही नहीं हैं वह बाल की खाल कैसे निकालेगा?
हटाएंफिर भी मेरी व्यंग्य-अनीति-कथा की तारीफ़ के लिए शुक्रिया.
यह क्या कम है कि हम-आप कलम के ज़रिये लोगों को अपने ज़िन्दा होने का एहसास दिला रहे हैं.