किलकारी मारते हुए बच्चों को देख कर वित्तमंत्री जी का अपने सचिव से सवाल -
'मैं जहाँ भी जाती हूँ, बच्चे मुझे देख कर किलकारी क्यों मारते हैं?'
सचिव का जवाब -
'मैम ! ये बच्चे आपको देख कर अपनी खुशी का इज़हार करते हैं क्यों कि आपने
बॉडी-पैक्ड माँ के दूध को जीएसटी के दायरे में शामिल नहीं किया है.'
और माननीया वित्तमंत्री जी को हमारा एक सुझाव -
महोदया !
आप सुविधा-शुल्क, तबादला-शुल्क, नियुक्ति-शुल्क, बयान बदल-शुल्क
तथा दल-बदल शुल्क को भी जीएसटी के दायरे में ला कर अपने ख़ज़ाने में
बे-हिसाब इजाफ़ा कर सकती हैं.
एक अरदास -
मैं मरूंगा तो मुझे टैक्स भी, भरना होगा,
जेब ख़ाली है, मेरी मौत को टलना होगा !
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-07-2022) को
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच "गरमी ने भी रंग जमाया" (चर्चा अंक-4496) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
'गर्मी ने भी रंग जमाया' (चर्चा अंक - 4496) में मेरी व्यंग्यात्मक टिप्पणी को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा है, चिंतनपूर्ण है व्यंग। सटीक अभिव्यक्ति के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा. जिस दिन जेब कटती है उस दिन तो फिर से जेब कटने का ख़तरा नहीं रहता.
हटाएंकिसलिये टाल ? कफ़न में एक जेब क्यों नहीं दे डाल?
जवाब देंहटाएंआजकल तो मुर्दा जेब वाले कफ़न में पहले अपना मोबाइल रखेगा और अपना पर्स बाद में.
हटाएंसतीश जी, हम महंगाई के मारे, टैक्स के मारे, लोग मारक अभिव्यक्ति कहाँ से लाएंगे? हमारी तो हर अभिव्यक्ति ख़ुद मरी हुई होती है.
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