एक हाथ में लाठी ठक-ठक,
और एक में,
सत्य, अहिंसा तथा
धर्म का,
टूटा-फूटा, लिए कटोरा.
धोती फटी सी, लटी दुपटी,
अरु पायं उपानहिं की, नहिं सामा,
राजा की नगरी फिर आया,
बिना बुलाए एक सुदामा.
बतलाता वो ख़ुद को, बापू,
जिसे भुला बैठे हैं बेटे,
रात किसी महफ़िल में थे वो,
अब जाकर बिस्तर पर लेटे.
लाठी की कर्कश ठक-ठक से,
नींद को उनके, उड़ जाना था,
गुस्ताख़ी करने वाले पर,
गुस्सा तो, बेशक़ आना था.
टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की दे कर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.
बाबा लौटा ठक-ठक कर के,
नयन कटोरों में जल भर के,
जीते जी कब चैन मिला था,
निर्वासन ही पाया मर के.
भारत दो टुकड़े करवाया,
शत्रु-देश को धन दिलवाया,
नाथू जैसे देश-रत्न को,
मर कर फांसी पर चढ़वाया.
राष्ट्रपिता कहलाता था वह,
राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,
बहुत दिनों गुमराह किया था,
कलई खुल गयी वापस जाए.
विश्व उसे जानता नहीं है,
देश उसे मानता नहीं है,
उसकी राह पे चलने का प्रण,
अब कोई ठानता नहीं है.
बाबा अति प्राचीन हो गया,
पुरातत्व का सीन हो गया,
उसे समझना मुश्किल है अब,
भैंस के आगे बीन हो गया.
दो अक्टूबर का अब यह दिन,
उसे भुलाने का ही दिन है,
तकली-चरखा जला, आज तो,
मधुशाला जाने का दिन है.
आओ उसकी लाठी ले कर,
इक-दूजे का हम सर फोड़ें,
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से फिर हम तोड़ें.
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से फिर हम तोड़ें.
इतनी निराशा से किसी का भला नहीं होने वाला, भारत का भविष्य उज्जवल है
जवाब देंहटाएंअनिता जी, भारत का भविष्य तभी उज्जवल हो सकता है जब हम गांधी को ज़िन्दा कर के उसे फिर से गोली मार दें.
हटाएंवैसे विश्व भी जानता है और देश तो बहुत ही मानता है । इस रचना को पढ़ कर लग रहा है कि मन में बड़ी उठापटक सी चल रही है ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, विद्यार्थियों को जब मैं गांधी के आंदोलनों के बारे में पढ़ाता था तब भी मेरे दिमाग में ऐसी ही उठा-पटक चलती रहती थी.
हटाएंआज गांधी को विश्व भले ही माने पर देशवासियों में अधिकांश नाथूराम गोडसे को उस से अधिक मानते हैं.
जय जय।
जवाब देंहटाएं'जय ! जय !' किसकी? गांधी की? या फिर गोडसे की?
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
'तुम ही मेरी हंसी हो' (चर्चा अंक - 4571) में मेरी काव्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
हटाएंसार्थक सटीक चिंतनपरक सृजन आदरणीय
जवाब देंहटाएंमेरी कलम के उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद अभिलाषा जी.
हटाएंसराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंमेरी कविता की सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मनोज कायल जी.
हटाएंगोपेश भाई, आज कुछ लोग भले ही गांधी जी को भूल गए हो लेकिन अभी भी करोड़ो भारतीयों के दिलोदिमाग पर उनका असर बाकी है और यही सच्चाई भी है।
जवाब देंहटाएंज्योति, ये गांधी-विरोधी पाखंडी उनको भूले नहीं हैं, बल्कि उन्हें भूलने का सिर्फ़ नाटक करते हैं. इन्हें गांधी से और गांधीवाद से आज भी डर लगता है.
हटाएंबाकी भारतीयों के दिल में तो वो आज भी ज़िन्दा हैं.