भारत-पाक तनाव को केवल युद्ध
के माध्यम से दूर करने की हिमायत करने वालों से मेरे कुछ सवालात -
जंग हुई फिर जीत गए,
कश्मीर का मसला हल होगा?
फिर न कहीं बमबारी होगी,
कहीं न फिर मातम होगा?
हिन्दू-मुस्लिम, गहरी खाई,
क्या इस से पट जाएगी?
और करोड़ों भूखों को,
हर दिन रोटी मिल जाएगी?
भटक रहे जो रोज़गार को,
रोज़ी उन्हें दिलाएगी?
माँ की कोख में सहमी कन्या,
जनम सदा ले पाएगी?
सूनी गोदें, उजड़ी मांगे,
क्या फिर से भर पाएंगी?
ताबूतों में रक्खी लाशें,
नहीं किसी घर आएंगी?
जंग जीत ली तो हाकिम के,
जल्वे कम हो जाएंगे?
किसे खरीदा, कहाँ बिके ख़ुद,
चर्चे कम हो जाएंगे?
चोरी, लूट, मिलावट, का क्या,
मुंह काला हो जाएगा?
जनता के सुख-दुःख में शामिल,
जन-प्रतिनिधि हो पाएगा?
मेहनतकश इंसान हमेशा,
मेहनत का फल पाएगा?
लोकतंत्र का रूप घिनौना,
क्या सुन्दर हो जाएगा?
राम-राज का सपना क्या,
भारत में सच हो जाएगा?
यह सब अगर नहीं हो पाया,
जीत-हार बेमानी है.
राजा सुखी, प्रजा पिसती है,
हरदम यही कहानी है.
वहशत, नफ़रत, खूंरेज़ी की
हर इक सोच, मिटानी है.
नहीं चाहिए जंग हमें अब,
शांति-ध्वजा फहरानी है.
चिंता ना करें | कड़ी निंदा की मिसाईले छोड़ी तो गए हैं | ठंड रखिए |
जवाब देंहटाएंदोस्त, जंग तो छिड़ गयी है. अब ठण्ड कैसे रखें?
हटाएंजो कुछ आपने गिनाया है, वह तो जंग न होने से भी वैसा ही रहने वाला है
जवाब देंहटाएंअनिता जी, यही तो मैं कह रहा हूँ. अपने इतिहास के विद्यार्थियों को मैं पढ़ाता था कि द्वितीय विश्व युद्ध में जीत मित्र-राष्ट्रों की हुई और हार हुई धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, इटली और जापान) की. लेकिन यह भी बताता था कि युद्ध में धुरी राष्ट्रों के कुल डेड़ करोड़ लोग मारे गए और मित्र-राष्ट्रों के कुल छह करोड़ लोग मारे गए.
हटाएंमहाभारत के बारे में तो आपको पता ही होगा.
महाकवि दिनकर के अमर काव्य 'कुरुक्षेत्र' का प्रथम छंद - 'कौन वह रोता वहां इतिहास के अध्याय पर---' अवश्य पढ़िएगा.
ये प्रश्न तो हमेशा प्रश्न ही रहेंगे ...ऐसे रामराज्य के लिये तो कलयुग समाप्ति का इंतजार करना होगा।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक लाजवाब सृजन ।
खाक़ हो जाएंगे, कलयुग के ख़तम होने तक -----
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