सोमवार, 12 मई 2025

कल मातृदिवस था

 2006, माँ की मृत्यु से एक साल पहले की यादें -

मैं – माँ ! मैं यूनिवर्सिटी जा रहा हूँ दरवाज़ा बंद कर लीजिए.
माँ – बब्बा ! नाश्ता कर के जइयो !
मैं – नाश्ता तो मैं कबका कर चुका हूँ.
माँ - तूने अपना पर्स रख लिया?
मैं – हाँ, रख लिया.
माँ – चाबी रख ली? और धूप का चश्मा?
मैं – हाँ, ये भी रख लिए.
माँ - और अपना मोबाइल?
मैं – वो भी रख लिया.
माँ – अपनी वाटर बॉटल ज़रूर साथ ले जाना.
मैं – माँ, मैं पचपन साल का हो गया हूँ. आप कब तक मुझे बच्चा ही समझती रहेंगी?
माँ – पचपन का हो गया तो क्या हुआ? बचपना तो तेरा फिर भी नहीं गया है. देखा, अपनी कैप ले जाना तो तू फिर भूल गया.

7 टिप्‍पणियां:

  1. माँ तो माँ ही होती है

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    1. माँ की जिन हिदायतों से और उनके जिन सवालों से खीझ होती थी आज उनको याद कर के न जाने क्यूं आँखें भर आती हैं.

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  2. उत्तर
    1. सभी माओं को और उनके निश्छल मातृत्व को हमारा नमन !

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  3. पचपन के होकर भी बचपन सी बातें और माँ को माँ का परम स्थान देने वाले बच्चे अब बहुत कम मिलते हैं
    अब तो माँ बस मातृ दिवस के दिन सोशल मीडिया में पढ़ने को मिल रही हैं

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    1. आजकल की माएं और आजकल के बच्चे भी, आपसी रिश्तों से ज़्यादा अहमियत मोबाइल और इन्टरनेट को दे रहीं/रहे हैं.
      साल में एक दिन का ये मातृदिवस तो हमने पश्चिम से उधार लिया है.
      हमारी संस्कृति में तो माता-पिता-गुरु की नित्य पूजा होती थी.

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