मुफ़लिस की बेबसी
पर
तू जन-सभा में
बोला
संसद-भवन में
बोला
टीवी पे जा के
बोला
तू रेडियो में
बोला
अखबार में भी
बोला
सपनों में झूठ
बोला
जागा तो झूठ बोला
मंदिर में झूठ
बोला
मस्जिद में झूठ
बोला
कितनों को मार
खाया
ये सच कभी न बोला
बन कर गरीब-परवर
उनके हुकूक बेचे
जो ख्वाब थे
सुहाने
वो तोड़-तोड़ बेचे
बचपन था उन से
छीना
फिर बेच दी जवानी
जिस में घना अँधेरा
ऐसी लिखी कहानी
इंसानियत का परचम
फहरा रहा सदा तू
मेहनतकशों के
हिस्से
का सब उड़ा रहा तू
तू घर जला के उनके
बंसी खड़ा बजाए
नीरो नहीं
कन्हैया
भक्तों में पर कहाए
जिन जाहिलों ने
तुझको
अपना समझ चुना है
सुरसा सा खोल कर
मुंह
उनको समूचा खाए
ये इंद्रजाल तेरा
इक दिन तो टूटना
है
पापों का तेरा
भांडा
इक दिन तो फूटना
है
थूकेंगे तेरे
अपने
तुझ पर इसी ज़मीं
पर
तू जीते जी मरेगा
इक दिन इसी ज़मीं
पर
खाए फिर न
धोखा
मासूम इस ज़मीं पर
नीलाम अस्मतों का
फिर हो न इस ज़मीं
पर
फिर बाज का ही
जलवा
होगा न आसमां में
इंसाफ़ भेड़ियों का
होगा न दास्ताँ में
हिर्सो-हवस की ज्वाला
सुलगे न फिर
दिलों में
नफ़रत के नाग सारे
घुस जाएं ख़ुद
बिलों में
ज़ालिम शिकस्त
पाए
पर्वत हो या हो
घाटी
आएगा दौर ऐसा
रौंदे कुम्हार
माटी
आएगा दौर ऐसा
रौंदे कुम्हार
माटी ----
नई और जागरूक पीढ़ी तैयार हो रही है।
जवाब देंहटाएंजो ऊंचे पद पर आसीन क्रूर व झूठे को पहचानेगी और उसके बुने जाल को तोड़ देगी।
तिरछी नजर कविता लेखन पर पड़ने लगी है। कमाल है गुरुदेव कमाल।
इसी विषय पर मैंने भी कुछ लिखा है।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
धन्यवाद रोहितास. मन जब कुछ अधिक व्यथित होता है तो दिल से कभी-कभी कविता फूट पड़ती है.
जवाब देंहटाएंमैंने तुम्हारी विचारोत्तेजक कविता पढ़ी. अच्छी है. मैंने तुम्हारे ब्लॉग पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी है.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
'पांच लिंकों का आनंद' के 8 नवम्बर, 2019 के अंक में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद श्वेता.
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
-अनीता लागुरी 'अनु'
'भागती ज़िंदगी' (चर्चा अंक - 3513) में मेरी कविता को सम्मिली करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता लागुरी 'अनु' जी.
हटाएंनफ़रत के नाग सारे
जवाब देंहटाएंघुस जाएं ख़ुद बिलों में
ज़ालिम शिकस्त पाए
पर्वत हो या हो घाटी
आएगा दौर ऐसा
रौंदे कुम्हार माटी
आएगा दौर ऐसा
रौंदे कुम्हार माटी ----
बहुत सुंदर और सटीक रचना आदरणीय
धन्यवाद अनुराधा जी. कुंठा, निराशा और आक्रोश इन्सान को दुस्साहसी बना देता है और कभी-कभी उसके भावों में कबीर की बानी प्रतिध्वनित होने लगती है.
जवाब देंहटाएंमन के क्षोभ को व्यक्त करती ओजपूर्ण रचना । विविध विषयों पर आपके लेखन का कोई जवाब नही..सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मीना जी.
हटाएंअवकाश-प्राप्ति के बाद फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत है इसलिए फ़ेसबुक के माध्यम से अपनी बात मित्रों तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ. मेरा सबसे बड़ा मनोरंजन विद्यार्थियों को पढ़ाना था पर अब तो कोई मुफ़्त में भी मुझ से पढ़ना नहीं चाहता.
गोपेश भाई, बहुत ही सुंदर सृजन। एक टिप्पणी में आपने कहा हैं कि अब तो मुफ्त में भी कोई मुझ से पढ़ना नहीं चाहता। तो इस बात पर मैं तो यहीं कहूंगी की हम जैसे पाठक तो पढ़ रहे हैं न। सिर्फ पढ़ ही नहीं रहे तो कुछ न कुछ नया और अच्छा जानने बजी मिल रहा हैं। आप अपने ब्लॉग पर ई मेल सब्सक्रिप्शन का विजेट लगा दीजिए ताकि आपके हर नई पोस्ट की जानकारी मिल सके।
जवाब देंहटाएंज्योति जी, आप जैसे उत्साहवर्धक सुधी पाठक मिल जाएं तो मेरी कलम को और मेरे साहित्य-सृजन को नित नई ऊर्जा प्राप्त होती रहेगी. मेरे मित्र प्रोफ़ेसर सुशील जोशी मुझे अक्सर अच्छी-अच्छी सलाहें देकर अपने ब्लॉग को अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने के लिए सलाह देते रहते हैं पर मैं अनाड़ी उनकी सलाह पर अमल नहीं कर पाता. मेरी बड़ी बेटी अगले महीने दुबई से आ रही है, उसकी मदद से मैं आपकी सलाह पर अमल करूंगा.
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
नयी पोस्ट: सौंदर्य की साधना।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद नितीश तिवारी जी. शीघ्र ही आपके ब्लॉग पर जाकर मैं आपकी रचना का आनंद लूँगा.
हटाएंआह ...
जवाब देंहटाएंकाश वो दिन जल्दी आये
सतीश जी, वो दिन आने से पहले इमरजेंसी लगाए जाने जैसे दो-चार हादसे और हो जाएंगे.
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