जी नमस्ते, आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं…. ***** रवीन्द्र सिंह यादव
तारीफ़ के लिए धन्यवाद अनीता. आज जो भी राजनीति में हो रहा है उस पर तंज़ कसे जा सकते हैं और फुलझड़ियाँ छोड़ी जा सकती हैं पर कोई महाकाव्य नहीं लिखा जा सकता. वैसे भी हमारे राजनीतिक पतन का अध्ययन करने पर कोई अपना इतना समय क्यों बर्बाद करना चाहेगा?
कोई गधा मुँह ही नहीं लगाता क्या करेंं?
जवाब देंहटाएंगधा क्यों किसी को मुंह लगाएगा? ज़रुरत पड़ने पर नेता उसको मुंह भी दिखाएगा और उसकी दुलत्ती भी खाएगा.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
'गठबंधन की राजनीति' (चर्चा अंक - 3537) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र.
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी.
हटाएंनेताओं का मतलब सत्ता धीश रहना ... चाहे जैसे हो ...
जवाब देंहटाएंहर पक्ष सत्ता कमाने के लिए रखना चाहता है ...
नेताओं के विषय में आप की बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ दिगंबर नासवा जी. अब तो 'नेता' शब्द को अश्लील-अभद्र-असंवैधानिक-असंसदीय घोषित कर दिया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा व्यंग्य लिखा है सर आपने. थोड़े शब्द और गहरी मारक बात लिखने में आपका कोई सानी नहीं है.
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम आदरणीय सर.
तारीफ़ के लिए धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंआज जो भी राजनीति में हो रहा है उस पर तंज़ कसे जा सकते हैं और फुलझड़ियाँ छोड़ी जा सकती हैं पर कोई महाकाव्य नहीं लिखा जा सकता. वैसे भी हमारे राजनीतिक पतन का अध्ययन करने पर कोई अपना इतना समय क्यों बर्बाद करना चाहेगा?