अपना सर बचायें आओ इनको और घी पिलायें।
ओखली में सर दिया है, वो कहाँ बच पाएगा? घी पिला दो इसको, फिर भी, खून पीने आएगा.
हम्म।ठगा ठगा सा लोकतंत्र है।मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
लोकतंत्र, ठगा-ठगा सा भी है और लुटा-लुटा सा भी है.रोहतास जी, आपकी डायरी पढ़ी, प्रतिक्रिया आपकी पोस्ट पर दे दी है.
जी नमस्ते,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित हैं….*****रवीन्द्र सिंह यादव
'सर कढ़ाई में इन्हीं के, उँगलियों में इन के घी' (चर्चा अंक - 3523) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीएन्द्र सिंह यादव जी. आप लोगों के प्यार ने मुझे अभिभूत कर दिया है.
हर बार की तरह गजब का व्यंग ।और सटीक भी ।
हौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया 'मन की वीणा' ! न तो हम अपनी आदत से बाज़ आएँगे और न ही वो !
इनको पूरी के पूरी 2 दिनों के लिए घी के ड्रम में डुबोकर छोड़ दिया जाए..तो कुछ बात बने..बहुत अच्छा व्यंग्य
प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनिता जी, मुझे इन विभूतियों की चिंता नहीं है किन्तु इस पुण्य-कार्य के लिए ड्रमों घी खर्च करना पड़ेगा, इसकी चिंता है.
अच्छा व्यंग्य
धन्यवाद ओंकार जी.
गज़ब ...सही सोंच !!
धन्यवाद सतीश जी.
वह वाह !!!!!! शानदार !
धन्यवाद रेणु जी.
अपना सर बचायें आओ इनको और घी पिलायें।
जवाब देंहटाएंओखली में सर दिया है, वो कहाँ बच पाएगा?
हटाएंघी पिला दो इसको, फिर भी, खून पीने आएगा.
हम्म।
जवाब देंहटाएंठगा ठगा सा लोकतंत्र है।
मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
लोकतंत्र, ठगा-ठगा सा भी है और लुटा-लुटा सा भी है.
हटाएंरोहतास जी, आपकी डायरी पढ़ी, प्रतिक्रिया आपकी पोस्ट पर दे दी है.
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
'सर कढ़ाई में इन्हीं के, उँगलियों में इन के घी' (चर्चा अंक - 3523) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीएन्द्र सिंह यादव जी. आप लोगों के प्यार ने मुझे अभिभूत कर दिया है.
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह गजब का व्यंग ।
जवाब देंहटाएंऔर सटीक भी ।
हौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया 'मन की वीणा' !
हटाएंन तो हम अपनी आदत से बाज़ आएँगे और न ही वो !
इनको पूरी के पूरी 2 दिनों के लिए घी के ड्रम में डुबोकर छोड़ दिया जाए..तो कुछ बात बने..बहुत अच्छा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनिता जी,
जवाब देंहटाएंमुझे इन विभूतियों की चिंता नहीं है किन्तु इस पुण्य-कार्य के लिए ड्रमों घी खर्च करना पड़ेगा, इसकी चिंता है.
अच्छा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी.
जवाब देंहटाएंगज़ब ...सही सोंच !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सतीश जी.
जवाब देंहटाएंवह वाह !!!!!! शानदार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणु जी.
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