रविवार, 17 नवंबर 2019

मौसमी मुर्गा


मौसमी मुर्गा –

1.    क्या विभीषण, मीर जाफ़र या कि हों जयचंद जी,
     सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी.  

2.    मेरे अफसानों में तेरा, ज़िक्र जब कभी आएगा,

    जहाँ कहीं हो, हर दल-बदलू, सज्दे में, झुक जाएगा.

16 टिप्‍पणियां:

  1. अपना सर बचायें आओ इनको और घी पिलायें।

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    1. ओखली में सर दिया है, वो कहाँ बच पाएगा?
      घी पिला दो इसको, फिर भी, खून पीने आएगा.

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  2. हम्म।
    ठगा ठगा सा लोकतंत्र है।

    मेरी कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका 

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    1. लोकतंत्र, ठगा-ठगा सा भी है और लुटा-लुटा सा भी है.
      रोहतास जी, आपकी डायरी पढ़ी, प्रतिक्रिया आपकी पोस्ट पर दे दी है.

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  4. 'सर कढ़ाई में इन्हीं के, उँगलियों में इन के घी' (चर्चा अंक - 3523) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीएन्द्र सिंह यादव जी. आप लोगों के प्यार ने मुझे अभिभूत कर दिया है.

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  5. हर बार की तरह गजब का व्यंग ।
    और सटीक भी ।

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    1. हौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया 'मन की वीणा' !
      न तो हम अपनी आदत से बाज़ आएँगे और न ही वो !

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  6. इनको पूरी के पूरी 2 दिनों के लिए घी के ड्रम में डुबोकर छोड़ दिया जाए..तो कुछ बात बने..बहुत अच्छा व्यंग्य

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  7. प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनिता जी,
    मुझे इन विभूतियों की चिंता नहीं है किन्तु इस पुण्य-कार्य के लिए ड्रमों घी खर्च करना पड़ेगा, इसकी चिंता है.

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