गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

मस्जिद नाहिं गिरायो

 साहब मोरे मस्जिद नाहिं गिरायो

भोर भये पूजा पर बैठ्यो सुध-बुध सब बिसरायो
प्रभु-भक्ती में लीन रह्यो तब सांझ परे कछु खायो
मैं बालक बहिंयन को छोटो मस्जिद किहि बिधि पायो
भीड़ मुई बेकाबू है गयी चढ़ कर ताहि ढहायो
नीर-क्षीर तू परम बिबेकी इनकी बात न आयो
फिर भी यदि कछु संका होवे जनमत तुरत करायो
बीत गए अट्ठाइस सावन कृपा नाहिं बरसायो
न्यायधीस तब बिहँसि आरोपी दोस-मुक्त ठहरायो

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय गोपेश जी , सत्ता के तरह- तरह के तमाशों में एक ये भी सही | तीखा व्यंग --- जो व्यवस्था के दोहरे चरित्र की पोल खोलता है |------ न्यायधीस तब बिहँसि आरोपी दोस-मुक्त ठहरायो --- ने तो ढका लिपटा उघाड़ दिया | सादर

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    1. रेणु जी, नंगों को उघड़ने का कोई ख़तरा नहीं होता.
      हमारी न्याय-व्यवस्था का नंगापन, खोखलापन और दोगलापन तो कोई सूरदास भी देख सकता है.
      हम और आप तो दो-दो आँखों वाले हैं तो ज़ाहिर है कि ऐसे तमाशे हमको आए दिन दिखाई ही दे जाएंगे.

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