यूं तो हमको टीवी पर, रेडियो पर और समाचार पत्रों में, सदा छाए रहने वाली एक विभूति की छत्रछाया में रहने का सौभाग्य प्राप्त है लेकिन जब उनके अलावा हमको कुछ और हस्तियों को भी दिन-रात देखना-सुनना पड़ता है तो हम अपने इस सौभाग्य से परेशान हो कर इस दुनिया को छोड़ कर भाग जाना चाहते हैं.
फ़ेसबुक पर उन नायिकाओं और उन नायकों से भगवान बचाए जो कि रोज़ाना अपनी एक दर्जन तस्वीरें पोस्ट करती/करते हैं.
छब्बीस जनवरी को तिरंगा लहराते, हुए होली के अवसर पर अबीर-गुलाल से खेलते हुए, ईद पर गोल टोपी धारण किए हुए, रक्षा बंधन पर बहन से राखी बंधवाते हुए या फिर भाई को राखी बांधते हुए, जन्माष्टमी पर कान्हाजी की या फिर राधाजी की भी छवि को मात करते हुए और दीपावली पर फुलझड़ी या अनार जलाते हुए, इनको देखने के बाद, रही-सही कसर इनकी बर्थडे पार्टीज़ पर केक काटते हुए इनकी विभिन्न मुद्राओं वाली फ़ोटोज़ से पूरी हो जाती है.
वैसे इनके फ़ोटो-शूट में दो कमियां फिर भी रह जाती हैं – गुड फ्राइडे पर न तो क्रॉस पर इन्हें चढ़ा हुआ दिखाया जाता है और न ही शहीद दिवस पर इन्हें फांसी के फंदे पर लटका हुआ.
यह आत्म-मुग्धि की पराकाष्ठा दूसरों को कितना कष्ट देती है, इसकी थाह पाना इन मासूम घमंडिनों के और इन भोले-भाले घमंडियों के, बस में नहीं है.
अगर ये देश-विदेश कहीं घूमने जाते हैं तो हमको फ़ेसबुक पर इनकी पचासों तस्वीरें देखनी पड़ती हैं और उनको लाइक भी करना पड़ता है.
अगर ये ताजमहल के सामने खड़े होकर रणवीर कपूर के पोज़ में अपनी तस्वीर खिंचवाते हैं तो इनकी कोशिश रहती है कि ये ताजमहल के गुम्बद से भी बड़े नज़र आएं और अगर ऐसी कोई आत्म-मुग्धा नायिका आलिया भट्ट के स्टाइल में बुलंद दरवाज़े के सामने खड़ी हों तो उनकी कोशिश रहती है कि वो उस से भी ज़्यादा बुलंद नज़र आएं.
और तो और, अगर ऐसी हस्तियाँ किसी मन्दिर में जाती हैं तो ये अपने फ़ोटो-शूट में भगवान को भी ओवर-शैडो करना चाहती हैं.
अपनी शादी के तुरंत बाद का एक क़िस्सा मुझे याद आ रहा है –
हमारे एक बहुत क़रीबी अंकल-आंटी थे.
अंकल उत्तर प्रदेश सरकार में बाक़ायदा एक फ़न्ने खां ओहदे पर तैनात थे.
अंकल-आंटी की मुझ से जब भी मुलाक़ात होती थी तो वो दोनों अपनी लेटेस्ट फ़ोटोज़ सहित गतांक से आगे की आत्म-श्लाघा का कार्यक्रम प्रारंभ कर देते थे.
लेकिन इस बार शादी के बाद मैं अंकल-आंटी से पहली बार मिल रहा था इसलिए मुझे उम्मीद थी कि वो लोग ख़ुद से ज़्यादा तवज्जो नई बहूरानी को देंगे.
दो-चार औपचारिक हाय-हेलो और सवाल-जवाब के बाद अंकल-आंटी ने नई बहूरानी को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया और दोनों ही उस समारोह का विस्तार से ज़िक्र करने लगे जिसमें अंकल तो मुख्य-अतिथि थे और पुरस्कार वितरण का शुभ-कार्य आंटी ने किया था.
आधे घंटे तक हम मियां-बीबी को रनिंग कमेंट्री के साथ इस समारोह का फ़ोटो-एल्बम देखना पड़ा.
सबसे दुखदायी बात तो यह थी कि हम दोनों को इस फ़ोटो-शतक की झूठ-मूठ तारीफ़ भी करनी पड़ी थी.
अंकल-आंटी से नई बहूरानी को कोई मुंह-दिखाई तो नहीं मिली लेकिन हमारी तारीफ़ से ख़ुश होकर उन्होंने स्मृति-चिह्न के रूप में वह फ़ोटो-एल्बम हमको ज़रूर दे दिया.
मेरी श्रीमती जी तो अंकल-आंटी के फीके स्वागत-सत्कार से बहुत दुखी हो गयी थीं लेकिन मेरे पास इस दुखदायी मिलन को सुखदायी समाचार में तब्दील करने का फ़ॉर्मूला था.
मैंने घर जाकर उस शानदार फ़ोटो-एल्बम की सारी फ़ोटोज़ चिंदी-चिंदी कर के आग के हवाले कर दीं और फिर उस ख़ाली एल्बम में अपनी शादी के एल्बम से बची हुई फ़ोटोज़ लगा लीं.
हमारे बहुत से उदीयमान गायक-गायिकाओं को फ़ेसबुक पर अपने वीडियोज़ पोस्ट करने का शौक़ होता है.
आए दिन ऐसे ही वीडियोज़ में बहुत से स्व-घोषित मुहम्मद रफ़ी और स्व-घोषित किशोर कुमार संगीत की हत्या करते नज़र आते हैं.
ऐसा ही अत्याचार लता मंगेशकर, आशा भोंसले या श्रेया घोषाल के साथ भी होता है.
मुझे उच्चारण दोष होने पर भी और क़ाफ़-शीन दुरुस्त न होने पर भी दूसरों के कानों में मच्छरों की तरह भिनभिनाते हुए बेसुरे कलाकार बहुत दुखी करते हैं.
अल्मोड़ा में हमारी एक भाभी जी स्व-घोषित गीता दत्त थीं.
ये बात और थी कि जब वो –
‘वक़्त ने किया क्या हंसी सितम - - - - ’
नग्मा गाती थीं तो वो गाती हुई गीता दत्त कम और मिमियाती हुई बकरी ज़्यादा लगती थीं
ऐसे ही जब वो –
‘न जाओ सैयां छुड़ा के बैयाँ, क़सम तुम्हारी मैं रो पडूँगी’
गाती थीं तो उनकी मधुर तान सुन कर सोते हुए बच्चे जाग कर रोने लगते थे.
भाभी जी से जब भी और जहां भी हमारी मुलाक़ात होती थी तो उनका दीर्घ-गामी गायन हमको बर्दाश्त करना ही पड़ता था.
उन दिनों सी. डी. का नहीं, बल्कि कैसेट्स का ज़माना था.
भाभी जी ने अच्छे-खासे पैसे खर्च कर के अपने गानों के कई कैसेट्स तैयार करवाए थे.
हमारे मना करने पर भी उन्होंने हमको अपने गानों वाले चार कैसेट्स ज़बर्दस्ती भेंट किए थे.
मुझ पापी ने कैसेट्स की दुकान पर जा कर स्व-घोषित गीता दत्त भाभी जी के मधुर गीत इरेज़ करवा कर उसमें असली गीता दत्त के गाने भरवा लिए थे.
हम मधुबाला की ख़ूबसूरती के क़ायल हैं लेकिन मधुबाला की हम रोज़ाना सैकड़ों तस्वीर देखेंगे तो उन से उकता जाएंगे.
हम सब लता जी के कोयल जैसे स्वर के मुरीद हैं मगर एक दिन में लता जी को सुनने का भी हम सबका कोई न कोई मैक्सिमम कोटा तो होता ही होगा.
सयाने कह गए हैं – ‘अति सर्वत्र वर्जयेत !’
किन्तु हमारे ये फ़ेसबुक चैंपियंस इस उक्ति की नित्य धज्जियाँ उड़ाते हैं और अपनी नाना प्रकार की तस्वीरों से, अपने भांति-भांति के वीडियोज़ से, हमारा चैन-ओ-अमन, हमारा सब्र-ओ-क़रार, बेतक़ल्लुफ़ होकर, बेमुरव्वत होकर, लूटते रहते हैं.
इन फ़ेसबुक चैंपियंस को अगर हम अपनी मित्र सूची से हटाएँ तो हम पर आफ़त आ सकती है. इनको फॉलो न करें या इनकी तस्वीरों और इनके वीडियोज़ को अगर हम लाइक न करें तो इनके तक़ाज़े आने लगते हैं.
मजबूरन हमको इन्हें और इनके अत्याचारों को बर्दाश्त करना ही पड़ता है.
क्या कोई क़ानून का जानकार मुझे बता सकता है कि श्रोताओं पर हिचकोले खाती भैंसागाड़ी की – ‘चूं-चरर-मरर, चूं-चरर-मरर’ जैसी आवाज़ में ग़ज़ल, गीत या कविता थोपने के अपराधियों पर और अपनी पचासियों हास्यास्पद-ऊलजलूल तस्वीरों से, अपने दर्जनों उबाऊ वीडियोज़ से, अपने फ़ेसबुक मित्रों को स्थायी सर-दर्द देने वाले इन मुजरिमों पर भारतीय दंड संहिता की कौन-कौन सी धाराएं लगाई जा सकती हैं?