गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

स्वर्णिम अवसर

 

1. हमको उन से रहम की है उम्मीद

जो नहीं जानते दया क्या है

कल दवा दस हज़ार में बेची

लाख का रेट अब बुरा क्या है

 2. खुल्लम-खुल्ला छूट है

लूट सके तो लूट

धरम-करम में यदि पड़ा

भाग जाएंगे फूट

 3. सजग पहरेदार की शिक़ायत –

 'गब्बर, तुम रोज़ हाथ मारो और हमको सिर्फ़ हफ़्ता दो.

बहुत नाइंसाफ़ी है !'

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. क्या किसी बंदर को न्यायाधीश बना कर उस से इंसाफ़ करवा लिया जाए?

      हटाएं
  2. करारा कटाक्ष, गोपेश भाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद ज्योति.
      इस करारे कटाक्ष को करने में ख़ुद को ही बहुत दर्द हो रहा है.

      हटाएं
  3. बिल्कुल सटीक कटाक्ष,बहुत सही संदर्भ उठाते हैं आप आदरणीय गोपेश जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
      हम-तुम इन चिकने घड़ों को अपने व्यंग्य-वाणों की वर्षा से भिगो नहीं सकते.

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद शिवम् कुमार पांडे जी.

      हटाएं