शनिवार, 10 अप्रैल 2021

सांच कहे तो मारन धावे

 

जहाँ भी तुम क़दम रख दो

वहीं पर राजधानी है

इशारों पर हिलाना दुम

ये पेशा खानदानी है

न ही इज्ज़त की है चिंता

न ही आँखों में पानी है

चरण-रज नित्य श्रद्धा से

हमें मस्तक लगानी है 

तुम्हें दिन में दिखें तारे

तो हाँ में हाँ मिलानी है

भले हो अक्ल घुटने में 

कहो जो बेद-बानी है

अगर कबिरा सा बोलें सांच

तो आफ़त बुलानी है

तुम्हारी हर जहालत पर

हमें ताली बजानी है


7 टिप्‍पणियां:

  1. 'आदमी के डसे का नहीं मन्त्र है' (चर्चा अंक - 4033) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  2. आजकल के माहौल पर आपकी व्यंग भरी रचना गजब तंज कस रही है ,सादर नमन ।नववर्ष तथा नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई...जिज्ञासा सिंह ।

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  3. मेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
    नव-संवत्सर और नव-रात्रि की तुमको भी सपरिवार हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !

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  4. वाह👌👌👌 बहुत मारक चाटुकार वंदना गोपेश जी🙏🙏

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    1. रेणुबाला जी, कब तक सिर्फ़ पेंशन पर गुज़ारा करूं?
      हो सकता है कि इस चाटुकार-वन्दना की बदौलत मैं किसी प्रदेश का राज्यपाल या फिर किसी केंद्र-शासित प्रदेश का उप-राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाऊं.

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    2. 😃😃😃अब इतनी बडी उम्मीद भी मत रखीये 😃🙏🙏🙏

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    3. अच्छा यह बताइए कि आपके-हमारे वर्तमान राष्ट्रपति ने राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति बनने से पूर्व, किस क्षेत्र में कौन सा तीर मारा था.
      हमको तो फिर भी सौ-दो सौ लोग जानते थे.

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