रविवार, 5 सितंबर 2021

आपा मिशन 50 प्रतिशत

शिक्षक दिवस पर अपनी पहली फ़ुल-टाइम विद्यार्थी आपा की याद को एक बार फिर ताज़ा करते हुए -
आपा - मिशन 50 प्रतिशत –
लखनऊ विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक भारतीय इतिहास में एम० ए० करना मेरे लिए एक सुखद अनुभव था.
इतिहास पढना मुझे बेहद अच्छा लग रहा था.
हमारे विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर नागर मुझे हमेशा बढ़ावा देते थे.
प्रोफ़ेसर नागर के प्रोत्साहन ने ही मुझ में अपने ही साथियों को पढ़ाने की हिम्मत दिलाई थी. पांच-छह साथियों को तो मैं अब बाकायदा पढाने भी लगा था.
हमारे क्लास में एक बुजुर्गवार मोहतरमा थीं.
उनका असली नाम न बता कर उन्हें सिर्फ आपा कह लेते हैं.
मामूली शक्लो-सूरत की आपा के चेहरे से सिर्फ मायूसी और बेबसी बरसती थी. इतिहास ज्ञान के मामले में वो पूरी तरह पैदल थीं.
आपा मुगले आज़म वाली भारी-भरकम उर्दू बोला करती थीं और हिंदी लिखने में उन्हें हमेशा दिक्कत होती थी, अंग्रेजी से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा था.
उनका रिकॉर्ड था कि उन्होंने कभी प्रथम या द्वितीय श्रेणी के दर्शन नहीं किए थे.
आपा मेरे सहपाठियों में मेरी सबसे बड़ी प्रशंसक थीं और उनके लिए मैं सुपर हीरो हुआ करता था.
आपा को मुझे रोजाना एक घंटा अलग से पढ़ाना पड़ता था.
मेरे क्लास की लड़कियां इस बात को लेकर मुझ पर खूब ताने कसती रहती थीं. उनकी समझ में नहीं आता था कि इस निरूपा राय किस्म की आपा पर मैं अपना इतना वक़्त कैसे बर्बाद कर लेता हूँ.
लड़कियों ने मुझ से इस रहस्य का उदघाटन किया कि आपा को उनके शौहर ने शादी के सात साल तक औलाद न होने की वजह से तलाक दे दिया था.
अब आपा ने बी०एड० करने के दस साल बाद पढाई फिर से शुरू की थी.
पर इन जानकारियों के बाद मेरे दिल में आपा के लिए इज्ज़त और बढ़ गयी और उनको पढ़ाने में मैं अब और भी ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा था.
आपा गाती बहुत अच्छा थीं, खासकर पुराने दर्द भरे नगमे गाने में तो उनका कोई जवाब ही नहीं था.
खाली पीरियड्स में आयोजित संगीत गोष्ठियों में हमारी फ़रमाइश पर उन्होंने पता नहीं कितने गाने गाए होंगे.
आपा गज़ब की कुक थीं. मेरे लिए बिना लहसुन प्याज़ की कोई न कोई नमकीन डिश और साथ में हलवा या सेवईं या फिर फिरनी बना कर लाना और उसे सबसे बचा कर सिर्फ मुझे खिलाने की आपा की आदत, मुझ जैसे हॉस्टल का बेस्वाद खाना खाने वाले को बहुत पसंद थी.
मेरे हॉस्टल और क्लास के भी साथी, महा बेशरम जनाब खान साहब की नाक बहुत तेज़ थी, वो आपा के पास बैठ कर सिर्फ खुशबू से यह जान लेते थे कि आपा आज क्या माल लेकर आई हैं.
खान साहब आपा पर ताने कसते हुए कहते थे -
‘गोपू बनिए की आये दिन खातिर और अपने बिरादर खान भैया को सिर्फ ठेंगा? आपा, कुछ तो शर्म करो.’
आपा भी ज़ोरदार जवाब देने में माहिर थीं –
‘गोपू मेरा उस्ताद है उसकी खातिर तो मैं ऐसे ही करुँगी और तेरी खातिर तो सिर्फ डंडों से ही करुँगी.
मैंने अब तक तीन-तीन डंडे ही देखें हैं पर चार कभी नहीं, मुझ पर तेरा साया भी पड़ गया तो एम० ए० में मेरे चार डंडे आयेंगे.
गुरु-दक्षिणा में वो चारो डंडे तेरे सर पर ही तो फोडूंगी.’
मैं उत्तर लिखते समय आपा की विस्तृत किस्सागोई की आदत से बहुत त्रस्त रहता था.
आपा की एक और बुरी आदत यह थी कि वो परीक्षा के समय पहले दो-तीन सवालों के जवाब में ही लगभग पूरा निर्धारित समय बर्बाद कर देती थीं.
आपा को आंसर शीट में क्या लिखना है, इससे ज्यादा मैंने यह सिखाया कि उन्हें उसमें क्या नहीं लिखना है और यह भी सिखाया कि उन्हें हर सवाल के जवाब को बराबर तवज्जो देनी है. मैंने उन से यह वचन भी लिया कि वो प्रश्नपत्र में अटेम्ट किए गए पाँचों सवालों के जवाबों के लिए बराबर वक़्त देंगी.
आपा की गाढ़ी उर्दू की जगह अब सरल हिंदी ने ले ली थी.
मेरी और आपा की मेहनत रंग लाई. मेरे एम० ए० पार्ट वन में उच्चतम अंक आए और आपा के आये 49 प्रतिशत.
आपा ने हम दोनों की सफलता की पहली किश्त की क्लास भर में मिठाई बांटी
अब एम० ए० फ़ाइनल में हम दोनों - आपा-मिशन 50 प्रतिशत में जुट गए.
एम० ए० फ़ाइनल में मैंने आपा को पहले से दुगुना पढ़ाया ही नहीं बल्कि उन्हें पहले से दुगुना होम-वर्क भी दिया.
पढ़ते-पढ़ते बेचारी आपा का चश्मे का नम्बर तक बढ़ गया लेकिन उनकी और मेरी मेहनत का नतीजा बड़ा खुशगवार रहा.
मैंने एम० ए० में टॉप किया और आपा के कुल 52 प्रतिशत अंक आए.
आपा के वालिद का एक मुस्लिम कन्या विद्यालय के मैनेजमेंट में काफी दबदबा था.
एम० ए० में 50 प्रतिशत अंक लाने पर आपा की वहां नौकरी पक्की हो जानी थी.
आपा को एम० ए० की सफलता पर नौकरी मिल भी गयी.
आपा-मिशन 50 प्रतिशत की सफलता, उनको नौकरी मिलने की , मेरे टॉप करने की और मुझे यूजीसी फ़ेलोशिप मिलने की, मिली-जुली खुशी में आपा के घर पर दावत रखी गयी.
आपा के वालिद, उनकी वालिदा, सभी परिवार-जन मेरे नाम से, मेरे काम से, अच्छी तरह वाकिफ थे.
मुझे ज़िन्दगी में कभी एक साथ इतनी दुआएं नहीं मिलीं, एक साथ कभी इतना प्यार नहीं मिला.
मेरे सामने तोहफों का अम्बार लगा था लेकिन खुश होने की जगह मेरी आँखें आंसुओं से भरी हुई थीं.
इसके बाद आपा की ज़िन्दगी में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हुआ.
कुछ साल बाद दो बच्चों के बाप, खाते-पीते परिवार के एक विधुर से उनकी शादी हो गयी.
आपा शाहजहांपुर चली गयीं. अपने शौहर के रसूख से उन्हें शाहजहांपुर में एक मुस्लिम गर्ल्स इंटर कॉलेज में नौकरी भी मिल गयी.
आपा ने कुछ ही दिनों में अपने शौहर के बच्चों को अपना बना लिया.
इस तरह से उनका माँ बनने का सपना भी पूरा हो गया.
मेरी लखनऊ यूनिवर्सिटी की जॉब छूटी तो फिर मैंने कुमाऊँ यूनिवर्सिटी जॉइन कर ली.
आपा की शादी के तीन-चार साल बाद से मेरी उन से फिर मुलाक़ात नहीं हुई पर मुझे आज भी याद आता है बड़े प्यार और अधिकार से उनका मुझे गोपू कह कर बुलाना, याद आते हैं उनके गाए हुए खूबसूरत नगमे, याद आता है, किसी न किसी बहाने सबके सामने मेरे सर पर हाथ फेरना, याद आते हैं उनके बनाए हुए स्वादिष्ट पकवान, पर सबसे ज्यादा याद आती हैं –
बे-इन्तहा दुलार बरसाती हुई, चश्मे के अन्दर से झांकती हुई, उनकी ममता भरी आँखें.

10 टिप्‍पणियां:

  1. शिक्षक दिवस पर इस से अच्छा क्या हो सकता है ? शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद !
      शिक्षक दिवस की तुमको भी बधाई मित्र !

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०७ -०९-२०२१) को
    'गौरय्या का गाँव'(चर्चा अंक- ४१८०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे संस्मरण को 'गौरैया का गाँव' (चर्चा अंक - 4180) में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर आपके ये निरूपा राय का उदाहरण वाला पात्र परिचय बड़ा ही रोचक और तुरत ज्ञान देने में बड़ा मदद करता है, इतना सुंदर और मजेदार संस्मरण साझा करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏🙏💐💐

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे संस्मरण की तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा !
      आपा को पढ़ाते-पढ़ाते अध्यापक बनने से पहले ही मुझे बैक-बेन्चर विद्यार्थियों की समस्याओं को सुलझाना आ गया था.

      हटाएं
  5. अद्भुत!! आपने अपनी यादों को इतनी सुन्दरता से सहेजा है। और उसे किस्सागोई के रूप में लिखना हम सब को आनंदित करता है।
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी !
    इन धूप-छाँव वाली यादों के सहारे ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही है और क़िस्सागोई तो मेरे निराश मन में आशा का संचार कर देती है.

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद आलोक सिन्हा जी.

    जवाब देंहटाएं