बुधवार, 21 सितंबर 2022

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे की फ़ोर्जरी राइम

पापा: चट्टे--बट्टे !

चट्टे-बट्टे : जी पापा !

पापा: भारत खा रए?

चट्टे--बट्टे : ना पापा !

पापा: घपले कर रए

चट्टे-बट्टे : ना पापा ! 

पापा: झूठ बोल रए?    

चट्टे-बट्टे : ना पापा !

पापा: देश-प्रगति फिर रुकती क्यूँ

रोज़ गरीबी बढ़ती क्यूँ?  

चट्टे : बट्टे  चोर बड़ा पापा

मैं निर्दोष सदा पापा !  

बट्टे: चट्टे  चीट बड़ा पापा

दूध-धुला मैं हूँ पापा !  

पापा : राजमहल से बंगले क्यूं,

स्विस बैंकों में खाते क्यूँ?  

चट्टे : ये तो सब अफ़वाहें हैं !

बट्टे : सब दुश्मन की चाले हैं !

पापा: दोनों अपना मुंह खोलो !

चट्टे- : हा ! हा ! हा ! हा ! 

बट्टे : हा ! हा ! हा ! हा ! 

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति.

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  2. ग़ज़ब !
    चट्टे- बट्टे !
    अब तो हम चट्टे-बट्टे भी नहीं कह सकते !
    अब तो आपका कॉपीराइट हो गया😀😀
    बहुत बढ़िया लिखा🫡🫡

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    उत्तर
    1. मेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा ! वैसे चट्टे-बट्टे पर मेरा कॉपीराइट भला कैसे हो सकता है? चट्टे-बट्टे ने तो भारत पर ही अपना कॉपीराइट कर रखा है.

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  3. वाह!बहुत बढ़िया कहा सर।
    हो क्या रहा है? जैसे समझने के बाद भी कुछ नहीं समझ आ रहा। दम घोंटू हवा का आवरण है।
    किसान आँखें मलते क्यों?
    उनके आँगन में लहसुन एक रूपये से भी सस्ता क्यों?

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    1. अनीता, हमारी वित्तमंत्री लहसुन नहीं खातीं इसलिए लहसुन सस्ता हो या फिर महंगा, उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा.
      रही किसानों के आँख मलने की बात तो शायद शाइनिंग इंडिया की चमक देख कर उनकी आँखें चौंधिया गयी होंगी.

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