बुधवार, 2 जनवरी 2019

नीड़ का निर्माण फिर


नीड़ का निर्माण फिर

श्री हरिवंश राय बच्चन की आत्म-कथा के एक खंड – नीड़ का निर्माण फिर में दिए गए सन्देश से प्रेरित होकर  पूरी तरह से टूटने के बाद ख़ुद को फिर से सँवारने की 38 साल पुरानी एक कोशिश –

इक नयी उम्मीद का, सपना संजोए आ रहा हूँ,

दर्द का एहसास है, फिर भी तराने गा रहा हूँ.

ज़िन्दगी में खो दिया जो, क्यूँ करूं उसका हिसाब,

आज अपने हाथ से, तकदीर लिखने जा रहा हूँ.

25 टिप्‍पणियां:

  1. वाहह.. सर..बेहतरीन... बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ👌

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    1. श्वेता, तुम्हारी कविता पढ़ कर ही अपनी यह पुरानी कविता याद आई थी. ये पंक्तियाँ तुमको अच्छी लगीं तो इनको पुनर्जीवित करने का श्रेय तुम्हीं को तो मिलना चाहिए.

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  2. सुशील बाबू, 1980-81 में 'आमीन' कहना था.

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  3. मेरी इस अति प्राचीन कविता को 'पांच लिंकों का आनंद' के माध्यम से सुधी पाठकों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
    कल के अंक की प्रतीक्षा रहेगी.

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  4. 'ब्लॉग बुलेटिन' में मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी.
    इश्वर से प्रार्थना है की नव-वर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो.

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  5. बेहतरीन और केवल बेहतरीन ...., आपका आशावाद बहुत अच्छा लगा ।

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    1. मीना जी, आपको सिर्फ़ धन्यवाद नहीं, नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ भी !
      परसों, नव-वर्ष की पहली सुबह एक निराशावादी कविता पोस्ट की थी, कल तस्वीर का दूसरा रुख पेश किया था. पहली वाली हकीकत थी और दूसरी वाली - आधी हकीकत, आधा फ़साना थी.

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  6. शुभ प्रभात आदरणीय
    वाह !! बेहतरीन पंक्तियाँ 👌

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    1. सुप्रभात अनिता जी,
      थोडा विलम्ब से ही सही - नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
      प्रशंसा के लिए धन्यवाद.

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  7. बहुत देर से सही औपचारिकता सही पर हृदय तल से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें सर आपको एंव आपके पुरे परिवार को।
    आशावादी आपकी पंक्तियाँ सर सामने का रंगमंच है पर्दे के पीछे की घोर निराशा की प्रतिक्रिया जो जीने को फिर से स्थापित करने की प्रेरणा बन हाथ थाम रही है।
    चार पंक्तियाँ पर जीवन का संबल बहुत सुंदर।
    निराशा से उबरने के लिए एक मेरी कोशिश आपकी शानदार पंक्तियों को समर्पित..
    माना उम्मीद पर जीने से हासिल कुछ नही लेकिन
    पर ये भी क्या,कि दिल को जीने का सहारा भी न दें।

    उजडने को उजडती है बसी बसाई बस्तियां
    पर ये भी क्या के फकत एक आशियां भी ना दे।

    खिल के मिलना ही है धूल में जानिब नक्बत
    पर ये क्या के खिलने को गुलिस्तां भी न दे।

    माना डूबी है कस्तियां किनारों पे मगर
    पर यूं भी क्या किसी को अश़्फाक भी न दे।

    बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेजार
    पर ये क्या उक़ूबत तिश्नगी में पानी भी न दे।

    मिलने को तो मिलती रहे दुआ ए हयात रौशन
    पर ये क्या के अजुमन को आब दारी भी न दे ।

    कुसुम कोठारी।

    नक्बत=दुर्भाग्य,अश़्फाक =सहारा आब ए चश्म = आंसू,उक़ूबत =सजा,तिश्नगी =प्यास

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    1. कुसुम जी, इसको कहते हैं गर्दिश में भी मुस्कुराने का हौसला रखना. बहुत सुन्दर, सार्थक और ऊर्जावान ग़ज़ल !
      नव-वर्ष की शुभकामनाएँ आपको पहले भी दे चुका हूँ, पर एक बार और सही.

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  8. अपने हाथ से तकदीर लिखने जा रहा हूँ!!!
    बहुत ही लाजवाब....
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  9. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुधा जी.
    आप सबको भी नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
      नव-वर्ष की आपको भी बधाई !

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    1. धन्यवाद प्रकाश ! यह कविता बड़े दिल से लिखी थी शायद इसीलिए आपके दिल को भी छू गयी.

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  12. अपने हाथों से जो ज़िन्दगी लिखता है वो उसका भरपूर आनद भी लेता है ...
    आशा और उम्मीद भरी पंक्तियाँ ...

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  13. दिगंबर नसवा जी. कुछ दिन पहले मेरे भांजे जयंत ने मेरी इस 38 साल पुरानी कविता को पढ़कर मुझे लिखा - 'मामा, बहुत अच्छी कविता है, इसे विस्तार दीजिए.'
    मैंने जवाब दिया - 'अब इस कविता तो कैसे विस्तार दूं? अब तो हाथ भी कांपते हैं, उनसे जो तक़दीर लिखूंगा वो भी तो कांपेगी ही न !'

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  14. आदरणीय गोपेश जी -- यद्यपि आपके ब्लॉग पर नित एक चक्कर तय है पर लिख ना पायी जिसका खेद रहता है | यहाँ आकर सकारात्मक विमर्श बहुत अच्छा लगता है | बहन कुसुम कोठारी जी टिप्पणी के क्या कहने !और आप जैसा सूत्रधार हो सोने पे सुहागा हो जाता है | सादर -

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    1. रेनू जी, सिर्फ़ 'वाह' और सिर्फ़ 'लाइक' तो मुझे रस्म-अदायगी लगते हैं. आप जैसे जागरूक और सहृदय पाठक और श्रोता हों तो बेहतर से बेहतर साहित्य-सृजन की प्रेरणा मिलती है.
      इधर मुझे फ़ेसबुक और अपने ब्लॉग पर संख्या में तो कम किन्तु गुणों से भरपूर मित्र मिलें हैं जो मेरा उत्साहवर्धन तो करते ही हैं और कई बार मेरा मार्ग-दर्शन भी करते हैं.
      आप लोगों से विचार-विमर्श कर मेरा बाक़ी का दिन बड़े सुख से बीतत्ता है.

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  15. उत्तर
    1. संजय भास्कर जी, यशोदा जी और आपकी रचना का आनंद लिया. उन पर मेरी टिप्पणियां देखिएगा.

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