सोमवार, 7 जनवरी 2019

आरक्षण



मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण के सख्त खिलाफ़ हूँ. दलितों को आरक्षण दिए जाने का लाभ प्रायः उस समाज के 1% शीर्षस्थ वर्ग तक ही सीमित रह गया है. तथाकथित पिछड़ी जातियों में भी आरक्षण का लाभ एक बहुत छोटे समुदाय तक सिमट कर रह गया है. अब सवर्णों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नए गुल खिलाएगी और नौकरियों के लिए भटकते प्रतिभाशाली युवाओं के लिए कुंठा-निराशा के नए कीर्तिमान स्थापित होंगे. मंडल कमीशन लागू होने पर क्षुब्ध होकर, आहत होकर, खून के घूँट पीकर, मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी थीं आज उनमें किंचित परिवर्तन कर  मैं इन पंक्तियों को आप सबके बुद्धि-विवेक और ज़मीर को अर्पित कर रहा हूँ.   
आरक्षण -
आरक्षण का चलता आरा,  मचा हुआ है हाहाकारा,
तर्क बुद्धि से किया किनारा,  मूल मन्त्र, केवल बटवारा.
स्वार्थ सिद्धि का नाटक सारा,  वोट बैंक का यह ब्यौपारा,
देस हाय चौपट कर डारा,  कैसे हो इस से निस्तारा..
हे विप्लव के रास-रचैया,  प्रतिभा-भन्जक, शान्ति-मिटैया,
जाति-भेद के भाव-बढ़ैया,  रोज़ी-रोटी के छिनवैया.
प्रगति-मार्ग अवरुद्ध करैया, नीरो सम बंसी के बजैया,
ताण्डव-नर्तक,  आग लगैया,  नव-पीढ़ी के चैन लुटैया.
मानवता के खून पिवैया, आत्म-दाह के पुनर्चलैया,
नैतिकता के ताक धरैया,  न्याय-धर्म के हजम करैया.
युवा मध्य हिंसा भड़कैया,  शिक्षा-तरु, जड़ से उखड़ैया,
भंवर ग्रस्त हो तुम्हरी नैया, जल-समाधि लो देश डुबैया.


13 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ जनवरी २०१९ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    1. मेरी कविता को 'लोकतंत्र' संवाद मंच के आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. अब मेरी व्यथा इस पत्रिका के सुधी पाठकों अक भी पहुँच सकेगी.

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  2. वाह, आदरणीय आरक्षण के विकृत स्वरूप का
    यथार्थ चित्रण , बेहतरीन रचना

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    1. धन्यवाद अभिलाषा जी. आरक्षण का प्रबल-समर्थक भी अगर अपने दिल पर हाथ रख ले तो उसे यह मानना पड़ेगा कि आरक्षण आम भारतीय के लिए अत्यंत हानिकारक है और इसके द्वारा जिनके उत्थान का ढोंग किया जा रहा है, उन तक इसका लाभ बहुत कम पहुँच पा रहा है.

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  3. आदरणीय गोपेश जी -- सरकार का नया फरमान सचमुच हैरान कर देने वाला है | आपकी समस्त पोस्ट एक सच्चे नागरिक और संवेदनशील कवि के आहत मन का दर्पण है | प्रतिभा शाली युवाओं के सपनों पर एक और कुठाराघात है ये घोषणा | आपके विचारों से पुर्णतः सहमत हूँ आरक्षण ने शायद देश समाज का उतना भला नहीं किया जितना जातिवाद और आपसी द्वेष , वैमनस्य को बढावा दिया है | प्रतिभाशाली युवा इस अनैतिक व्यवस्था इ आगे घुटने टेक कर आकंठ कुंठा और मायूसी में डूब जाता है | सरकारी नौकरियों में नित नये अजब गजब फरमान सुनकर हैरान होते युवा दिनोदिन और आक्रामक होते जा रहे हैं | पिछले दिनों एक सरकारी नौकरी के परीक्षा थी और मुझे कहीं जाना था | बसों की खिडकियों पर लटके और छत पर जीवन का मोह भूल बैठे युवाओं को देखकर उनकी दयनीय स्थिति को देखकर मन में ना जाने कैसी करूणा का संचार हुआ | एक तो बेरोजगार लोगों के लिए नौकरियों की सख्या कम उस पर आरक्षण की तलवार कितने मौके कम करते है ये कोई बताने वाली बात नहीं | आज आपकी मंडल कमीशन की याद दिलाती काव्य रचना ने तो सरकार की इस नाजायज व्यवस्था की खूब पोल पट्टी खोल दी है | ये केवल आपके मन की व्यथा नहीं हर सजग नागरिक की चिंता हैं | सादर आभार इस विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए |

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    1. रेनू जी, इस आरक्षण की नीति ने हमारे देश की प्रगति में घुन लगा दिया है और युवा पीढ़ी में कुंठा,नैराश्य और आक्रोश भर दिया है. विभिन्न जातीय समुदायों में आपसी घृणा और द्वेष बढ़ाने में इसने वैसी ही विनाशकारी भूमिका निभाई है जैसी कि साम्प्रदायिकता की आग भड़काने वाली नीतियों ने निभाई है.
      हर चुनाव से पहले ऐसे शगूफ़े छोड़े जाते हैं जो पूरी तरह से लागू हो पाएं या न हो पाएं लेकिन समाज में अपना ज़हरीला असर ज़रूर छोड़ जाते हैं.
      सबसे दुःख की बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल खुलकर इस निर्णय का विरोध नहीं करेगा.
      हम-आप क्या करोड़ों लोग चिल्लाते रहेंगे लेकिन ये भेड़िया हम सबके बच्चों के भविष्य को उठाकर ले जाएगा और हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे.

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    2. रेनू जी, 'अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा' वाली टिप्पणी देखी, उसका जवाब भी दिया पर न जाने क्यों आपकी टिपण्णी और मेरा जवाब गायब हो गया.

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    3. कोई बात नहीं गोपेश जी | आप मेरे शब्दों को महत्व देते हैं मेरे लिए यही बहुत है | आपकी बात के लिए कहूं तो भविष्य के कर्णधार बहुत सजग हैं | आशा है वोही अपने सुरक्षित भविष्य के लिए कोई रास्ता निकालेंगे | राजनीति के शातिर दल तो अपने वोट बैंक को मालामाल करने के लिए दांव खेलने से बाज नहीं आयेंगे पर शायद भविष्य में कोई एसा मसीहा सत्ता में आये जो राष्ट्र को आरक्षण के इस कलंक से मुक्त करा दे |

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    4. संजय भास्कर जी, प्रशंसा के लिए धन्यवाद. पता नहीं क्यों आपकी टिपण्णी और उस पर मेरा जवाब अचानक ही गायब हो गया.

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  4. समानता , बन्धुता जैसी विशेषताओंं के बीच आरक्षण जैसी विशेषता विरोधाभासी है । होना तो यही चाहिए था कि स्वन्तत्र भारत के सभी नागरिक सामाजिक और अवसरों की समानता में संविधान के समक्ष समान होते मगर आरक्षण की बैशाखी से एक लकीर खींच दी गई वहाँ भी । ऐसी व्यवस्थाएँँ कितना नफा और नुकसान देती हैं इसकी किस को पड़ी है ।

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    1. मीना जी, हमारे कोसने से या हमारे द्वारा आलोचना करने से इन चिकने घड़ों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. लेकिन जैसे वी. पी. सिंह को मंडल कमीशन को लागू करने वाला दांव बहुत महंगा पड़ा था वैसे ही यह दांव आज की सत्ताधारी को महंगा पड़ने वाला है.
      हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम इनकी ऐसी चालों को बेनक़ाब करें, संगठित होकर उनका विरोध करें.
      अपने बच्चों के भविष्य से हम इन्हें कैसे खिलवाड़ करने दे सकते हैं?

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  5. आरक्षण किसी हद तक ठीक था ... पर अब ये सिर्फ राजनीति का हथियार है ...
    सत्ता पाने का साधन जिसे अब तक एक पार्टी भुना रही थी अब दुसरे ने शुरू कर दिया ... इस का कोई सलूशन नहीं है किसी के पास ...

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  6. दिगंबर नसवा जी, आरक्षण देने के स्थान पर पिछड़े तबके और गरीब तबके को बिना धर्म-जाति भेद के, शैक्षिक अनुदान दिया जाना चाहिए था और उस में माता-पिता के लिए परिवार-नियोजन की शर्त भी रखी जानी चाहिए थी. पिछले 71 सालों में आरक्षण का लाभ तो बहुत कम लोगों ने उठाया है और आम ग़रीब उतना ही पिछड़ा तथा उतना ही ग़रीब बना हुआ है. अब तो हद गयी है. आरक्षण का ज़हर फैलता ही जा रहा है और उसके साथ सामाजिक वैमनस्य बढ़ता ही जा रहा है.

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