शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

ऑल राउंडर पी. टी. सर

 (यह कहानी मेरे अप्रकाशित बाल-कथा संग्रह – ‘कलियों की मुस्कान’ से ली गयी है जिसमें कि मेरी 12 साल की बेटी गीतिका अपने किस्से सुनाती है. इस कहानी का रचना-काल 1990 का दशक है.)

पी. टी. शब्द सुनते ही हम बच्चों में जोश आ जाता है.

अगर हम बच्चों का जनमत संग्रह किया जाय तो साबित हो जाएगा कि उनका सबसे फ़ेवरिट पीरियेड पी. टी. वाला ही होता है.
मैथ्स की गुत्थियों से दूर, साइंस की पेचीदगी से अलग, हिस्ट्री की मारामारी से हटाकर पी. टी. हमको मस्ती और राहत देती है.
‘ एक-दो-एक, लेफ़्ट-राइट-लेफ़्ट, सावधान-विश्राम !’ वाह क्या संगीत है !
इसी पीरियड में हम गावस्कर, विवियन रिचर्ड्स और सचिन जैसा बैट्समैन, डेनिस लिली, कपिल देव या कुम्बले जैसा बॉलर, पेले या माराडोना जैसा फ़ुटबॉलर, पीट सम्प्रास या स्टेफ़ी ग्राफ़ जैसा टेनिस प्लेयर बनने की कोशिश करते हैं और कॉपी--किताब की कैद से आज़ाद होकर खुले आस्मान में अपने सपनों की उड़ान भरते हैं.
लेकिन हमारे लिए पी. टी. का मतलब है हमारे पी. टी. सर.
पी. टी. सर यानी हमारे फि़जि़कल ट्रेनिंग इन्सट्रक्टर ! हमारे पी. टी. सर सिर्फ़ अपने काम से ही पी. टी. नहीं हैं बल्कि अपने नाम से भी पी. टी. हैं. उनका पूरा नाम तो है पुरुषोत्तम तिवारी पर जब से उन्होंने बतौर पी. टी. इन्ट्रक्टर हमारा स्कूल ज्वाइन किया है तब से उन्हें सिर्फ़ पी. टी. सर ही पुकारा जाता है.
उनका असली नाम शायद दो-चार लोग ही जानते होंगे.
अपने नामकरण के बारे में खुद पी. टी. एक बड़ी मज़ेदार बात बताते हैं. जिस समय उनके नामकरण के लिए पण्डितजी को बुलाया गया, उस समय वो पालने में बड़े रिदम के साथ कुछ-कुछ पी. टी. जैसी उछलकूद कर रहे थे.
पण्डितजी के बोलने से पहले ही बालक का नाम उसके पिता ने पी. टी. रख दिया. पुरुषोत्तम तिवारी इसी नाम का विस्तृत रूप है.
पी. टी. सर पढ़ने-लिखने में करीब-करीब पैदल थे.
खेल-कूद में भी उन्होंने बी. ए. फर्स्ट ईयर तक कोई पदक नहीं जीता पर बी. ए. फ़ाइनल में अचानक ही दस हज़ार मीटर की दौड़ में वो कुमाऊँ यूनीवर्सिटी में प्रथम आए और इसमें उन्होंने नया रिकॉर्ड भी कायम किया.
उनकी इसी उपलब्धि के कारण उन्हें पी. टी. आई. की ट्रेनिंग के लिए पटियाला भेजा गया और वहाँ से लौटकर उन्होंने हमारे स्कूल की शोभा बढ़ाई.
उनकी दस हज़ार मीटर की दौड़ में आश्चर्यजनक जीत की कहानी उनके दुश्मनों की ज़ुबानी कुछ इस तरह है –
‘ पी. टी. सर के बड़े भाई जो कि राज्य स्तर के एथलीट रहे थे, उनकी शक्ल अपने छोटे भाई से हू-बहू मिलती थी. दस हजार मीटर्स की रेस के लिए नाम तो लिखाया गया पी. टी. सर का, पर उनकी जगह दौड़े और रेस में फर्स्ट आए उनके बड़े भाई. बाद में ठीक वैसे ही कपड़ों में विक्ट्री स्टैण्ड पर पी. टी. सर को खड़ा कर दिया गया.
इस हेराफेरी में कुछ लोगों को दान-दक्षिणा ज़रूर देनी पड़ी पर फिर पी. टी. सर का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सका. ’
पी. टी. सर को ऐसी अफ़वाहें फैलाने वालों की हमेशा तलाश रहती है.
उनका बस चले तो झूठा प्रचार करने वाले ऐसे गपोडि़यों को वो कच्चा चबा जाएँ. पर क्या करें ! बेचारे शाकाहारी हैं इसलिए चाह कर भी वो ऐसा कुछ कर नहीं सकते.
दुनिया में तरह-तरह के बुखार होते हैं, कोई सीज़नल तो कोई वाइरल.
हम हिन्दुस्तानियों को आमतौर पर बारहों महीने क्रिकेट का बुख़ार चढ़ा रहता है.
हमारे पी. टी. सर को भी क्रिकेट का जुनून है. वो हमारे स्कूल की क्रिकेट टीम के परमानेन्ट मेम्बर हैं.
उनकी धर्म पत्नी श्रीमती प्रेमा तिवारी यानी पी. टी. मैडम उनके क्रिकेट प्रेम से बहुत दुखी रहती हैं.
उनके पतिदेव घर के सारे आलू , टमाटरों को अपनी बॉलिंग और बैटिंग प्रैक्टिस में इस्तेमाल कर डालते हैं.
पी. टी. मैडम ने जब से घर के फल, सब्ज़ी अपने पतिदेव से छुपाकर रखने शुरू कर दिए हैं तब से अचानक ही अगल-बगल के घरों के नीबू, अमरूद, आड़ू और खूबानी के पेड़ों पर फल पकने से पहले ही तोड़े जाने की ख़बरें आ रही हैं.
वैसे बॉल बनाने के लिए पाँगड़ के पेड़ का फल पी. टी. सर को सबसे बढि़या लगता है. टेबिल टेनिस की बॉल के साइज़ का काले रंग का यह फल जाड़ों के दिनों में अल्मोड़ा के कैन्टुनमेन्ट एरिया में सड़कों पर बहुतायत से पड़ा मिलता है.
अपनी शाकाहारी बॉलों को लेकर पी. टी. सर अक्सर कैच प्रैक्टिस करते हुए देखे जा सकते हैं.
पी. टी. सर के डाइविंग कैचेज़ देखकर तो एकनाथ सोलकर और अज़हारुद्दीन को भी काम्प्लेक्स हो सकता है क्योंकि इनमें बॉल तो होती ही नहीं है.
इस तरह के काल्पनिक किन्तु महा-कठिन कैच लेने से हमारे पी. टी. सर की एक्सरसाइज़ भी हो जाती है.
पी. टी. सर की बैटिंग तो लाजवाब है. विवियन रिचर्ड्स, सचिन और लारा क्या खाकर उनका मुकाबला करेंगे.
हमारे सर के हुक शॉट्स देखते ही बनते हैं. ऐसे शॉट्स लगाते वक्त उनका बैट भले ही बॉल को न छू पाए पर वो खुद स्टम्प्स पर बिला नागा ज़रूर गिर पड़ते हैं.
बॉलर के सर के ऊपर से साइड स्क्रीन पर सिक्सर मारने का उन्हें बहुत शौक है, इस शौक को पूरा करने के लिए वो क्रीज़ से तीन मीटर तक आगे बढ़कर और अपनी आँखें बन्द कर बैट हवा में ज़ोर से घुमा देते हैं. इसी चक्कर में अभी हाल ही में उन्होंने लगातार सात टूर्नामेन्ट्स में पहली बॉल पर क्लीन बोल्ड होने का रिकॉर्ड कायम किया है.
हमारे सर को किसी भी बॉलर की बॉल से डर नहीं लगता है.
फ़ास्ट बॉलर हो या स्पिनर वो हर एक को सबक सिखाना चाहते हैं पर किस्मत उनका न जाने क्यों, साथ नहीं देती.
बैट और बॉल की अगर मुलाकात हो गई तो उनका कैच ले लिया जाता है वरना उनके हाथ से छूटा हुआ बैट किसी फ़ील्डर, अम्पायर या नान बैटिंग एण्ड पर खड़े बैट्समैन को जाकर लगता है.
आजकल रन आउट के डिसीज़न के लिए अम्पायर्स एक्शन रि-प्ले का सहारा लेते हैं पर हमारे पी. टी. सर के मामले में उन्हें इस तकनीक की मदद की ज़रूरत ही नहीं पड़ सकती क्योंकि ऐसे मौकों पर वो हमेशा पिच के बीचो-बीच खड़े पाए जाते हैं.
नवजोत सिंह सिद्धू और सचिन के सिक्सर लगाने पर भारत में बड़ा जश्न मनाया जाता था.
पी. टी. सर को लगा कि इन खिलाडियों को बेकार में घमण्ड हो गया है। उन्होंने जल्द ही उनका घमण्ड तोड़ दिया.
क्यूँ पड़ गए न चक्कर में?
किस्सा यूँ है कि सचिन द्वारा अब्दुल कादिर की बॉलों पर कई छक्के लगाने के कारनामे के अगले हफ़्ते ही होने वाले इण्टर डिस्ट्रिक्ट स्कूल क्रिकेट टूर्नामेन्ट में हमारे स्कूल की तरफ़ से बॉलिंग करते हुए पी. टी. सर ने एक ओवर में आठ सिक्सर्स खाए.
अब छह बॉल के ओवर में आठ सिक्सर्स कैसे सम्भव हैं?
सम्भव क्यों नहीं हैं? ओवर की छहो वैलिड बॉल्स पर तो सिक्सर पड़े ही पर पी. टी. सर की दो नो बॉल्स पर भी छक्के पड़े.
इस तरह दुनिया के हर बैट्समैन के रिकॉर्ड को हमारे पी. टी. सर ने एक सप्ताह के भीतर ही तुड़वा दिया.
भारत के महान बॉलरों - प्रसन्ना, चंद्रशेखर और बेदी को अपनी फिरकी गेंदों पर बड़ा नाज़ होगा पर इसके जवाब में हमारे पी. टी. सर ने एक नए स्टाइल की फिरकी ‘अजूबा’ की खोज की है.
इस बॉलिंग स्टाइल में बॉल स्टम्प्स की ओर न जाकर फ़ुल टॉस के रूप में स्कावयर लेग पर खड़े अम्पायर के सर पर लगती है.
इस तरह की बॉल्स से पी. टी. सर ने कोई विकेट भले न लिया हो पर एक दर्जन अम्पायरों को घायल कर उन्हें पैवेलियन लौटने के लिए ज़रूर मजबूर किया है.
अब समझदार अम्पायर्स पी. टी. सर की बॉलिंग के समय हैल्मेट लगा कर ही खड़े होते हैं.
पी. टी. सर की फ़ील्डिंग पर कुछ न कहना ही बेहतर होगा.
उनके हिसाब से बैट्समैन का बैट लगते ही बॉल में चार सौ चालीस वाट का करेन्ट आ जाता है, फ़ील्डर को उसे हाथ से कभी नहीं छूना चाहिए इसलिए अपने रबर सोल लगे जूतों से ही वो बॉल को रोकने का प्रयास करते हैं.
बॉल रोकने के अपने दस अटेम्ट्स में कम से कम एक में वो सफल हो जाते हैं पर फिर बॉल को स्टम्प्स तक थ्रो करने में उनकी महारत आड़े आ जाती है.
उनके गलत निशाने और बॉल थ्रो करने की महा धीमी स्पीड की वजह से बैट्समैन दौड़कर हमेशा चार रन तो बना ही लेते हैं.
हमारे सर को क्रिकेट की दुनिया में पी. टी. सरदर्द के नाम से जाना जाता है.
हम लोगों की हज़ार कोशिशों के बावजूद हमारी प्रिंसिपल मैम ने उन्हें बरसों तक हमारी स्कूल की स्टाफ और स्टूडैन्ट्स की कम्बाइन्ड क्रिकेट टीम का कैप्टिन बना रखा था.
हमको याद नहीं पड़ता कि हमारी स्कूल की टीम कोई भी ऐसा मैच जीती हो जिसमें कि पी. टी. सर ने पार्टिसिपेट किया हो.
अब आखि़रकार प्रिंसिपल मैम ने अपने स्कूल की क्रिकेट टीम पर तरस खाकर पी. टी. सर की एक्टिव सेवाओं से उसे मुक्ति दिला दी है.
पी. टी. सर को अब हमारी टीम के कोच का थ्योरिटिकल कोच या सलाहकार नियुक्त कर दिया गया है.
उनको फ़ील्ड पर जाकर कोचिंग देने की इजाज़त तो नहीं है पर हमारी क्रिकेट स्किल इम्प्रूव करने के लिए वो हमारे कोच को जुबानी या लिखित सलाह ज़रूर दे सकते हैं.
पी. टी. सर अपनी इस नई रिस्पान्सिबिलिटी से बहुत खुश हैं.
इधर हमारी टीम ने पी. टी. सर को फ़ील्ड पर उतारे बिना लगातार तीन टूर्नामेन्ट्स जीते हैं.
पी. टी. सर का दावा है कि यह सब हमारे कोच को उनके द्वारा दी गई सलाह और कोचिंग का ही परिणाम है.
आजकल पी. टी. सर सचिन तेन्दुलकर को अपनी बैटिंग की कमियों को दूर करने के लिए करैस्पान्डेन्स कोर्स करा रहे हैं.
उन्होंने यह भी दावा किया है कि कई देशॉ के प्रतिष्ठित बॉलर्स ने कपिल देव का रिकॉर्ड तोड़ने में उन्हें अपनी मदद करने की और अपना कोच बनने की प्रार्थना की है.
यह भी सुनने में आया है कि तमाम भारतीय और विदेशी खिलाड़ी उन से फ़ील्डिंग की कोचिंग लेकर अपनी फ़ील्डिंग स्किल को बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं.

8 टिप्‍पणियां:

  1. डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', यह एक व्यंग्यपूर्ण बाल-कथा है, उपयोगी जानकारी नहीं !

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  2. बहुत सही कहा आपने !! मेरे स्कूल में भी कुछ ऐसे ही पी टी टीचर थे..सटीक व्यंग..सुन्दर लेखन..

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    1. तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा जी.
      आज से 55 साल पहले हमारे गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, बाराबंकी में पी. टी. आई. थे, मेकेंजी लाल मास्साब. मास्साब हर खेल में जीरो थे लेकिन कॉलेज की हर टीम के मेम्बर हुआ करते थे और कॉलेज को बार-बार हरवाने में उनकी अहम भूमिका रहा करती थी. वैसे हर स्कूल, कॉलेज में ऐसे कार्टून होते ही हैं.

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  3. बिल्कुल सही कहा सर आपने.. आपको मेरा हार्दिक अभिवादन..

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  4. हमारा तुम्हें आशीर्वाद !
    तुम मुझ सत्तर साल के नौजवान से बहुत छोटी होगी इसलिए अभी से 'जी' और 'आप' वाली औपचारिकता ख़त्म.

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