शनिवार, 2 अप्रैल 2022

पानीपत की चौथी लड़ाई

 पानीपत में हुई 1526, 1556 और 1761 में हुई तीन विकट लड़ाइयों के बारे में कौन नहीं जानता? पानीपत के ही पड़ौस में कुरुक्षेत्र है जहाँ पर कि महाभारत हुआ था. यहाँ से कुछ ही दूर पर तराइन है जहाँ पर कि पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी आपस में दो बार भिड़े थे और यहाँ से करनाल भी कोई ख़ास दूर नहीं है जहाँ पर कि नादिरशाह ने मुगल फ़ौज को करारी शिकस्त दी थी.

हमारे कहने का मक्सद है कि पानीपत की और उसके आसपास की मिट्टी में ही लड़ाई-भिड़ाई के और गुत्थम-गुत्था के कीटाणु थे और आज भी मौजूद हैं.
हमारा किस्सा बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में पानीपत में हुई चौथी लड़ाई का है.
पानीपत शहर के शांति नगर मोहल्ले की एक लेन में हरयाणा के मशहूर गुड़-व्यापारी स्वर्गीय लाला दसरथ प्रसाद का आलीशान मकान था.
लाला जी की ललाइन श्रीमती तारा देवी का भी स्वर्गवास हो चुका था. अब लाला जी के दो बेटे राम प्रसाद और लछमन प्रसाद, उनका व्यापार सँभालते थे और उनकी दोनों बहुएं – सविता देवी और निर्मला कुमारी, घर में स्वर्गीया ललाइन तारा देवी वाली ज़िम्मेदारियाँ संभाला करती थीं.
राम प्रसाद और लछमन प्रसाद, दोनों ही, एक-दूसरे पर जान छिड़का करते थे.
ये दोनों भाई त्रेतायुग के भाइयों की अमर जोड़ी के आपसी प्यार के और आपसी भरोसे के किस्सों को फिर से दोहराया करते थे.
लेकिन सविता देवी के और निर्मला कुमारी के बीच कोई बहनापा नहीं था. इन जेठानी-देवरानी का आपसी रिश्ता एक ही घर में रहने वाली उन दो झगड़ालू बिल्लियों जैसा था जिनको कि तब तक चैन ही नहीं मिलता था जब तक कि वो दिन में एकाद बार एक-दूसरे पर गुर्रा न लें और एक-दूसरे को खोंसा न मार लें.
लाला दसरथ प्रसाद ने एक गरीब मास्टर की बी० ए० पास, सुन्दर सी बिटिया, सविता देवी को अपने हाईस्कूल फ़ेल सपूत राम प्रसाद के लिए बिना दान-दहेज़ के ही इस लिए पसंद कर लिया था कि उनके धन-धान्य से परिपूर्ण घर को लक्ष्मी मैया के साथ-साथ, सरस्वती मैया का भी वरदान प्राप्त हो जाए और उनके पोते-पोतियां, खानदान की सेमी अंगूठा छाप छवि को तोड़ कर डिप्टी कलेक्टर, प्रोफ़ेसर, डॉक्टर और इंजिनियर बन जाएं.
सरस्वती मैया की प्रतिनिधि के रूप में पहली बहू लाने के बाद लाला दस्ररथ प्रसाद ने दूसरी बहू के रूप में लक्ष्मी-पुत्री ही लाने का फ़ैसला किया था.
उन्होंने एक रिश्वतखोर दरोगा की हाईस्कूल फ़ेल बिटिया, सांवली-सलोनी, निर्मला कुमारी को अपने इंटर पास, छोटे बेटे लछमन प्रसाद के लिए इसलिए चुना था ताकि दहेज़ में आई मोटी रकम के बल पर वो अपने व्यापार को भारत के कोने-कोने में फैला सकें.
खानदान का पहला इंटर पास लछमन प्रसाद, इस कूढ़ मगज और थोड़ी सांवली दरोगा-पुत्री से शादी करने को तभी राज़ी हुआ था जब कि उसे दहेज़ में तमाम कीमती उपहारों के अलावा अपनी मन-पसंद मारुति 800 कार मिल गयी थी.
एक तरफ़ अध-पढ़े खानदान में आ कर ग्रेजुएट सविता देवी रात-दिन अपनी डिग्री का नक्शा मारती थी तो दूसरी तरफ़ निर्मला कुमारी –
‘मेरे पापा जी ने ये दिया था, मेरी मम्मी जी ने वो दिया था, पिछली होली पर हमारे यहाँ से ये आया था और इस दिवाली पर हमारे यहाँ से वो आएगा’ का राग अलापती रहती थी.
लाला और ललाइन के ज़िन्दा रहते जेठानी-देवरानी के आपसी दंगल आमतौर पर साप्ताहिक कार्यक्रम की शक्ल में हुआ करते थे लेकिन उनके गुज़रते ही उन दोनों के बीच रोज़ाना ही दंगली टूर्नामेंट होने लगे थे.
राम प्रसाद और लछमन प्रसाद जब तक घर पर रहते थे, इन दोनों वीरांगनाओं के बीच कोई गुत्थम-गुत्था नहीं हुआ करती थी और अपने बच्चों के सामने भी इनके आपसी संबंधों में ज़बर्दस्ती की ओढ़ी हुई मिठास झलकती थी लेकिन अपने-अपने पतियों के दुकान जाते ही और बच्चों के स्कूल जाते ही, दोनों जेठानी-देवरानी आपसी भिडंत का कोई न कोई बहाना खोज लाती थीं.
इन जेठानी-देवरानी, दोनों को, एक-दूसरे के खानदान के गड़े मुर्दे उखाड़ने में महारत हासिल थी.
जहाँ निर्मला कुमारी को यह अच्छे से पता था कि मास्साब ताउजी मीलों साइकिल चलाते हुए पानीपत के कोने-कोने में किस तरह ट्यूशन देने जाया करते थे तो वहां सविता देवी को यह ज़ुबानी याद था कि दरोगा चाचा जी अपनी रिश्वतखोरी के जौहरों की वजह से कब, कहाँ और कुल कितनी बार सस्पेंड हुए थे.
एक बात अच्छी थी कि इन झगड़ालू बिल्लियों जैसी जेठानी-देवरानी के रिश्ते का असर उनके बच्चों पर नहीं पड़ा था.
एक तरफ़ राम प्रसाद और सविता देवी का बेटा राजू, अपनी चाची का दीवाना हुआ करता था तो दूसरी तरफ़ लछमन प्रसाद और निर्मला कुमारी की बिटिया कम्मो, अपनी ताईजी की सुपर-फ़ास्ट फ्रेंड हुआ करती थी.
अपने बच्चों के सामने सविता देवी और निर्मला कुमारी को आपस में फ़िल्म ‘शोले’ के जय और बीरू वाली गाढ़ी दोस्ती का ड्रामा करना पड़ता था.
अपने-अपने पतियों और अपने-अपने बच्चों की अनुपस्थिति में एक दोपहर को दोनों जेठानी-देवरानी साथ में बैठ कर खाना खा रही थीं कि जेठानी जी ने अपनी देवरानी को अपनी दाल की कटोरी दिखाते हुए कहा–
‘निर्मला कुमारी ! तुमने दाल में जो मिर्च-जीरे का छौंक लगाया है, वो तुम्हारी तरह जला-भुना क्यों है?’
निर्मला कुमारी ने तपाक से जवाब दिया –
‘जिज्जी, पूरे पानीपत में साइकिल चला कर जगह-जगह जा कर ट्यूशन देने वाले कंगलों के घर की गोरी-चिट्टी बेटियों को अच्छा खाना पकाना आता होगा. दरोगा बाप की सांवली बेटी को भला अच्छा खाना बनाना कैसे आएगा? उसके मायके में तो दो-दो रसोइए काम करते हैं.’
सविता देवी ने फुफकार छोड़ते हुए कहा –
‘बहना ! जब तक तुम दरोगा की बेटी थीं तब तक तो तुम्हारा रसोईघर से दूर रहना ठीक था लेकिन अब तुम ढंग से खाना पकाना सीख ही लो क्यों कि तुम अब दरोगा की बेटी नहीं रहीं बल्कि अब तुम बर्ख़ास्त दरोगा की बेटी हो गयी हो.’
निर्मला कुमारी ने रुआंसे स्वर में कहा –
‘भूल गईं जिज्जी? अब के बर्ख़ास्त दरोगा ने तुम्हें सात साल पहले डेड़ तोले सोने की चेन भेंट में दी थी.’
सविता देवी ने पलट कर जवाब दिया –
‘अच्छी तरह से याद है पर तुम ये भूल गईं कि साइकिल चला कर जगह-जगह ट्यूशन देने वाले उस कंगले मास्टर ने दो बार की हाईस्कूल फ़ेल दरोगा की बिटिया को जब साल भर फ़्री में ट्यूशन दे कर सेकंड डिवीज़न में हाईस्कूल पास करवाया था तभी उसके बाप ने मुझे वो सोने की चेन भेंट की थी.’
निर्मला कुमारी ने रोते हुए कहा –
‘आने दो कम्मो को, मैं बताऊंगी उसे कि उसकी प्यारी ताईजी उसके दरोगा नाना के लिए कैसी-कैसी जली-कटी बातें करती हैं.
सविता देवी ने आह भरते हुए कहा –
‘मैं तो राजू को ये हर्गिज़ नहीं बताऊंगी कि उसकी चहेती चाची अपने रिश्वतखोर दरोगा बाप के पैसों के बल पर उसकी बी० ए० पास माँ को और उसके मास्टर नाना को कैसे-कैसे नीचा दिखाती है.’
निर्मला कुमारी ने अपनी छाती पीटते हुए चीत्कार किया –
‘मेरे तो करम फूट गए ! हाय पापा जी ! हाय मम्मी जी ! तुमने मेरी शादी करते टाइम ये तो देखा होता कि मुझे किस आफ़त की परकाली जेठानी के साथ अपने दिन गुज़ारने होंगे.’
पूरे मोहल्ले को सुनाते हुए सविता देवी ने जवाब दिया –
‘देखो दुनिया वालों – सांवली और कूढ़-मगज ये बर्खास्त दरोगा की बिटिया रानी, आधा दर्जन लड़के वालों से रिजेक्ट होने के बाद इतने अच्छे घर में आ कर और ऐसी सरस्वती मैया की पुत्री जैसी जेठानी पा कर भी अपनी फूटी किस्मत को रो रही हैं.’
बात अभी और आगे बढ़ती. दोनों वीरांगनाएं घर के और दुकान के बटवारे तक भी पहुँचती कि घर के बाहर चाट के ठेले वाले गंगू ने ज़ोर-ज़ोर से अपना तवा बजाना शुरू कर दिया.
निर्मला कुमारी, अपनी जेठानी को फिर कोई ज़हर बुझी बात सुनाना ही चाहती थी कि इस ‘टन-टना-टन’ के मस्त शोर ने उसका मूड एकदम से बदल दिया.
अपनी ज़ुबान में अचानक मिस्री घोलते हुए उसने सविता देवी से पूछा –
‘गोलगप्पे खाओगी जिज्जी?’
सविता देवी के कानों में भी इस ‘टन-टना-टन’ के मधुर संगीत ने मानों प्रेम और सद्भाव का रस ही घोल दिया था.
पिछले आधे घंटे की घमासान लड़ाई को भूलते हुए मुस्कुरा कर उसने निर्मला कुमारी को जवाब दिया –
‘तू अपनी मन-पसंद आलू की टिक्की खाना, मैं गोलगप्पे खा लूंगी.’
अगले पंद्रह-बीस मिनट तक जेठानी-देवरानी– फ़िल्म ‘शोले’ का -‘ ये दोस्ती, हम नहीं तोड़ेंगे’ वाला सीन रि-क्रियेट कर रही थीं.
एक तरफ़ सविता देवी गंगू चाट वाले को स्पेशल इंस्ट्रक्शन दे कर अपनी देवरानी के लिए नीबू और हरी चटनी डलवा कर आलू की टिक्की तैयार करवा रही थी तो दूसरी तरफ़ निर्मला कुमारी अपनी जिज्जी के लिए दही-चटनी वाले स्पेशल गोल-गप्पे लगवा रही थी.
लेकिन दुष्ट गंगू चाट वाला था कि इन जेठानी-देवरानी को चाट के पत्ते पर पत्ते देता हुआ हंसे चला जा रहा था, हंसे चला जा रहा था.
हैरान सविता देवी और निर्मला कुमारी ने एक साथ पूछा –
‘क्यों रे गंगू, तू इतना हंस क्यों रहा है?’
गंगू ने जैसे तैसे अपनी हंसी पर काबू पा कर उन्हें जवाब दिया –
‘बड़ी भाभी जी और छोटी भाभी जी, अभी कुछ देर पहले तक आपके घर से पूरे मोहल्ले में पानीपत की चौथी लड़ाई का शोर सुनाई दे रहा था पर अब मेरी चाट की किरपा से पानीपत की चौथी लड़ाई भरत-मिलाप में बदल गयी है.
मैं यह सोच रहा था कि अगर मेरे पुरखे पानीपत की तीनों लडाइयों के ठीक बीच में अपने चाट के ठेले ले कर वहां पहुँच जाते तो फिर वो तीनों लड़ाइयाँ भी पानीपत की इस चौथी लड़ाई की तरह रुक जातीं.’
सविता देवी को और निर्मला कुमारी को गंगू चाट वाले की इस गुस्ताख़ी पर उसका सर कटवाना तो बनता था पर सविता देवी ने अपने गुस्से पर काबू कर गंगू से सिर्फ़ इतना कहा -
‘फ़ालतू की चकर-बकर मत कर, मेरी कम्मो स्कूल से वापस आती होगी. तू उसके लिए कुरकुरी पापड़ी डाल कर एक पत्ता चटपटी मटर की टिक्की तैयार कर.’
और निर्मला कुमारी ने भी चहकते हुए फ़र्माया –
‘मेरे राजू के लिए मीठी चटनी डाल के एक पत्ता दही-भल्ला बना.’
पाठकगण ! यह मत समझिएगा कि पानीपत की चौथी लड़ाई अपने अंजाम तक पहुँचने से पहले ही ख़त्म हो गयी. दरअसल इसमें युद्ध-विराम की तर्ज़ पर सिर्फ़ चाट-विराम हुआ था.
दुर्भाग्य से चाट-विराम के आगे की कथा का हमारे पास कोई ब्यौरा नहीं है.
चाट-विराम के बाद पानीपत की इस चौथी लड़ाई में क्या-क्या हुआ, कैसे-कैसे शब्दरूपी अस्त्र-शस्त्र प्रयोग में लाए गए और आखिर में इसमें कौन जीता, कौन हारा, इसे जानने के लिए आप लोग ख़ुद अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग कीजिए.

12 टिप्‍पणियां:

  1. मित्र, तुम चाहे जितनी वाह करो, मैं पानीपत की पांचवीं लड़ाई पर कुछ भी नहीं लिखूंगा.

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (3-4-22) को "सॄष्टि रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा".(चर्चा अंक-4389)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. 'सृष्टि-रचना प्रारंभ दिवस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा' (चर्चा अंक - 4389) में मेरी हास्य-कथा को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.

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  3. बहुत ही बढ़िया । कितना सुंदर क्लाइमेक्स गंगू चाट वाला ।
    ये देवरानी जेठानी के किस्से आपके गहन अनुभव और भारतीय देवरानी जेठानी के जीवन दर्शन का परिचायक हैं।
    इनकी झलकियां अक्सर देखने को मिलती हैं,परंतु इतना रोचक सुंदर चित्रण के क्या कहने ।
    बहुत बढ़िया लिखा है । आपको नमन और वंदन।

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    1. कहानी की तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा. यह कहानी मेरी कल्पना-शक्ति के भरोसे ही लिखी गयी है क्यों कि हमारे खानदान में एकल परिवार का ही रिवाज है इसलिए संयुक्त परिवार में जेठानी-देवरानी में होने वाली दैनिक भिडंतों का मेरा अनुभव लगभग शून्य है.

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    1. मेरी कहानी का आनंद लेने के लिए धन्यवाद मनोज कायल जी.

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  5. वाह, लेखन का अनोखा और रोचक अंदाज

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  6. मेरे गुस्ताख लेखन की तारीफ़ के लिए शुक्रिया अनिता जी.

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  7. पानीपत की लड़ाई !
    बहुत ही सुन्दर.... वैसे आपकी कल्पना यथार्थ के बहुत करीब है संयुक्त परिवार में भाइयों के आपसी प्रेम के आगे देवरानी जेठानी का बड़ा से बड़ा द्वंद भी छोटा पड़ जाता है यदि प्रेम हो तो...वरना पानीपत की पहली लडा़ई में ही घर टूट जाता है।
    लाजवाब कहानी।

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    1. मेरी कहानी की तारीफ़ के लिए शुक्रिया सुधा जी.
      जेठानी-देवरानी क्या और सास-बहू क्या, इनके आपसी झगड़े अधिकतर ईगो-प्रॉब्लम की वजह से होते हैं.
      इन्हें लड़ाई का बहाना चाहिए और संधि करने का भी.

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