भगवान बुद्ध जब बेलुवन में विहार कर रहे थे तब उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति ने स्नान किया और उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम-ऊपर और नीचे की छह दिशाओं को प्रणाम किया.
भगवान बुद्ध ने उससे इसका तात्पर्य पूछा तो उसने उन्हें बताया कि उसके पिताजी ने छह दिशाओं को नमस्कार करने का उसे उपदेश दिया था.
भगवान बुद्ध ने कहा –
'वत्स ! यह तो आर्य-धर्म नहीं है,'
फिर भगवान बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा –
‘वत्स ! क्या तुम्हारे पिता ने तुम्हें छह दिशाओं को नमस्कार करने के इस आर्य-धर्म के कारणों की व्याख्या की थी?’
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया –
‘नहीं भगवन ! पिताजी ने इस आर्य-धर्म के निर्वहन का कोई कारण तो मुझे नहीं बताया था.’
अब उस व्यक्ति ने भगवान बुद्ध से प्रार्थना की –
भगवन ! आप मुझे छह दिशाओं को नमस्कार करने वाले आर्य-धर्म का उपदेश करिए.’
भगवान बुद्ध ने उपदेश किया –
‘माता-पिता पूर्व-दिशा हैं.
आचार्य दक्षिण-दिशा हैं.
पत्नी और पुत्र पश्चिम-दिशा हैं.
मित्र और साथी उत्तर-दिशा हैं.
भृत्य और कर्मकर नीचे की दिशा हैं.
तथा
ब्राह्मण और श्रमण ऊपर की दिशा हैं.
इनके प्रति अपने दायित्व को निभाना ही छह दिशाओं को नमस्कार है. यह आर्य-धर्म है.’
अब इस कथा का एक विकृत किन्तु अत्यंत व्यावहारिक एवं संशोधित रूप प्रस्तुत है -
बाबा पापाचार्य एक दिन अंधेर नगरी के अपने आश्रम में अपने सिंहासन पर विराजमान हो कर आँख मूँद कर ध्यान कर रहे थे.
पीछा करती पुलिस से और भीड़ से, भाग कर अपनी जान बचाता एक उठाईगीरा उनके आश्रम में दबे-पाँव आ कर उनके सिंहासन के पीछे छुप गया.
भीड़ को तो आश्रम के पहलवानों ने बाहर ही रोक दिया पर दो-चार पुलिस वालों को उन्होंने अन्दर जाने दिया.
बाहर हो रहे हो हल्ले से और पुलिसकर्मियों के आश्रम-प्रवेश से बाबा पापाचार्य का ध्यान टूट गया. उन्होंने अपना ध्यान तोड़ने वाले पुलिसकर्मियों पर अपनी आग्नेय दृष्टि डालते हुए उन्हें डपटते हुए उन से पूछा –
‘मूर्खो ! क्या ये तुम्हारी खाला का घर है जो बिना इजाज़त घुसे चले आ रहे हो?’
पुलिसकर्मियों के मुखिया सब-इंस्पेक्टर रिश्वत सिंह ने हाथ जोड़ कर बाबा पापाचार्य से गिड़गिड़ाते हुए कहा –
‘भगवन ! आपके ध्यान में विघ्न डालने के लिए हम क्षमा चाहते हैं लेकिन हम सब एक उठाईगीरे का पीछा करते हुए यहाँ आए हैं. वह बदमाश सेठ हवालामल की बीबी के गले से उसका हीरों का हार पार कर के भागा है और आपके आश्रम में ही आ कर छुप गया है.’
बाबा जी ने अपनी आँखें फाड़ते हुए पूछा –
‘हीरों का हार?’
रिश्वत सिंह ने जवाब दिया –
‘हाँ भगवन ! हीरों का हार ! जिसकी कीमत करीब बीस-पच्चीस लाख की तो होगी ही.’
बाबा जी ने रिश्वत सिंह को आश्वस्त करते हुए कहा –
‘वत्स ! हमारे आश्रम में अनधिकृत प्रवेश करते ही पापी तो स्वतः भस्म हो जाता है. यहाँ कोई उठाईगीरा नहीं आया है. तुम उसे कहीं और जा कर खोजो.’
इतना कह कर बाबा जी फिर ध्यानमग्न हो गए पर ध्यानमग्न होने से पहले उन्होंने रिश्वत सिंह को, न जाने क्यों, आँख अवश्य मारी थी.
रिश्वत सिंह ने बाबा पापाचार्य के चरण स्पर्श किए और उसने भी ध्यानमग्न बाबा जी को, न जाने क्यों, आँख मारते हुए उन से विदा ली.
बाबा जी को ध्यानमग्न देख कर उठाईगीरा चुपके से उनके कक्ष से बाहर निकल गया लेकिन आश्रम से अभी बाहर निकलने पर पकड़े जाने का ख़तरा था इसलिए उसने फ़िलहाल आश्रम में ही रहने का निश्चय किया. सवाल यह था कि वह आश्रम में किस हैसियत से रहेगा.
उठाईगीरे को बगुला-भगत बनना आता था. बाबा जी का ध्यान टूटते ही वह उनके समक्ष एकांत में फिर उपस्थित हो गया.
बाबा जी के सामने अपनी भक्ति-भावना का ढोंग करते हुए उस पापी ने
उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम-ऊपर और नीचे की छह दिशाओं को प्रणाम किया.
बाबा पापाचार्य ने उससे इसका तात्पर्य पूछा तो उसने कहा –
‘मेरे पिताजी ने छह दिशाओं को नमस्कार करने का उपदेश किया था.’
बाबा पापाचार्य ने उस ढोंगी भक्त से पूछा –
‘वत्स ! तेरे पिता जी ने क्या तुझे यह नहीं बताया था कि छह दिशाओं को नमस्कार क्यों किया जाता है?’
बगुला-भगत ने निराश स्वर में उत्तर दिया –
‘प्रभो ! मेरे पिताजी आपकी तरह ज्ञानी-ध्यानी तो थे नहीं ! आप ही इस पहेली को सुलझाइए.’
बाबा पापाचार्य ने आगंतुक से कहा –
‘बच्चा ! छह दिशाओं को नमस्कार क्यों किया जाता है, यह ज्ञान तुझे मैं देता हूँ -
हमारा गुप्त सी सी टीवी नेटवर्क, पूर्व-दिशा है.
हमारे लट्ठबाज़ चेले-चपाटे, पश्चिम-दिशा है.
पुलिस से हमारी मिली भगत, दक्षिण-दिशा है.
चोर-बाज़ार में हमारी गहरी पैठ, उत्तर-दिशा है.
हवाला ट्रांज़ेक्शंस की अत्याधुनिक व्यवस्था, नीचे की दिशा है.
तथा
हमारी बात न मानने वाले के लिए, केवल ऊपर की दिशा है.’
उठाईगीरे ने भक्तिभाव से परिपूर्ण स्वर में बाबा पापाचार्य से पूछा –
‘भगवन ! छहों दिशाएँ मुझे क्या संकेत कर रही हैं?’
बाबा पापाचार्य ने उत्तर दिया –
‘छहों दिशाएँ चीख-चीख कर कह रही हैं कि तू वह हीरो का हार हमारे चरणों में अर्पित कर दे.
वैसे भी हमारे गुप्त सीसी टीवी में तेरी हर हरक़त क़ैद हो चुकी है. हमारे इशारे पर ही सब-इंस्पेक्टर रिश्वत सिंह हमारी देखरेख में तुझे छोड़ कर यहाँ से चुपचाप विदा हुआ है.’
उठाईगीरे ने वह हीरों का हार बाबा जी के चरणों में चढाते हुए उन से पूछा –
‘प्रभो ! आशीर्वाद के रूप में मुझे क्या मिलेगा?’
बाबा जी ने मुस्कुरा कर कहा -
‘चोर बाज़ार में ये हार हम बिकवाएँगे. कई जौहरियों से हमारे कॉन्टेक्ट्स हैं.
सौदे का आधा माल हम रक्खेंगे,
चौथाई माल दरोगा रिश्वत सिंह और उसके साथी पुलिसिये रक्खेंगे
और बाक़ी बचा चौथाई माल तुझको मिल जाएगा.’
उठाईगीरा सयाना था, उसने – ‘भागते भूत की लंगोटी भली’ वाली कहावत पहले से सुन रक्खी थी. उसने बाबा पापाचार्य के चरण गहे और फिर उन से कहा –
‘परम-पूज्य श्री मौसेरे भाई का आदेश, इस दास के सर-माथे पर !
प्रभो ! इस दास को ऐसी सेवाओं का अवसर आप बार-बार दें ! बस, यही प्रार्थना है !’
बाबा जी की जयजय
जवाब देंहटाएंएक ऐसे बाबा जी तो हरद्वार में भी रहते हैं.
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
पांच लिंकों का आनन्द" के सोमवार 18 अप्रैल 2022 के अंक में मेरी व्यंग्य-कथा को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक - 4404 के सोमवार 18 अप्रैल, 2022 के अंक में) में मेरी व्यंग्य-कथा को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंमाता-पिता पूर्व-दिशा हैं.
जवाब देंहटाएंआचार्य दक्षिण-दिशा हैं.
पत्नी और पुत्र पश्चिम-दिशा हैं.
मित्र और साथी उत्तर-दिशा हैं.
भृत्य और कर्मकर नीचे की दिशा हैं.
तथा
ब्राह्मण और श्रमण ऊपर की दिशा हैं.
इनके प्रति अपने दायित्व का निर्वाह ही सच्चा प्रणाम है, कितनी सुंदर बात, भगवान बुद्ध के इस सुंदर उपदेश से अवगत कराने के लिए साधुवाद!
अनिता जी, भगवान बुद्ध का यह उपदेशात्मक-कथा तो 'दीघ-निकाय' में उपलब्ध है ही.
हटाएंमेरे खुराफ़ाती दिमाग ने जो कथा को अपने ढंग से मोड़ कर प्रस्तुत किया, उस पर तो आपने कोई टिप्पणी की ही नहीं.
व्यंग्य कथा अपनी जगह लेकिन गौतम बुद्ध ने छह दिशाओं के विषय में जो कहा इसकी जानकारी मिली । आभार ।।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, भगवान बुद्ध के उपदेशों से तो हम सदैव बहुत कुछ सीख सकते हैं किन्तु आज ज़माना तो पापाचार्य जैसों का है और सयाने भक्तगण उन जैसों से ही प्रैक्टिकल किस्म का ज्ञान प्राप्त करने में दिलचस्पी रखते हैं.
हटाएंभगवान बुद्ध के द्वारा दिए गए दिशा ज्ञान से अवगत करने के लिए बहुत धन्यवाद सर ।
जवाब देंहटाएंकहानी में कहानी खोजना और सामयिक संदर्भ जोड़कर सटीक अभ्यर्थना ।कमाल की शैली विकसित कर रहे हैं आप👏🏻🌴
जिज्ञासा, 'दीघ-निकाय' में वर्णित यह कहानी तो मैंने फ़ेसबुक पर आदरणीय राजेन्द्ररंजन चतुर्वेदी की पोस्ट से ली है लेकिन उसको तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने की खुराफ़ात मेरी अपनी है.
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मनोज जी.
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