हर जगह फ़िल्मी धुनों पर, गीत माँ के गाइए,
रात-दिन माइक लगा कर, शोर भी मचवाइए.
मेवे-फल के ढेर संग, चंदा भी जम कर खाइए,
धर्म-मज़हब की सियासत से, मगर बाज़ आइए.
कौन मुंह खोले-ढके, तालीम से मत जोड़िए,
कैसे, कब, क्या, खा रहा, इसकी फ़िक़र भी छोड़िए.
मुफ़लिसी, महंगाई, बढ़ती जा रही है बे-हिसाब,
असली मुद्दों को भुला, आपस में सर मत फोड़िए.
सही मशवरा
जवाब देंहटाएंअनिता जी, मेरा मशवरा सही हो सकता है पर मुझे यह नहीं पता कि मैं जिनको यह मशवरा दे रहा हूँ, उन्हें यह सही लग रहा है या फिर नहीं !
हटाएं'उसकी हंसी' (चर्चा अंक - 4394) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंबहुत कूटेंगे भगत लोग :)
जवाब देंहटाएंदोस्त, भगत लोग बहुत कूटेंगे तो स्वर्ग-लोक तो पक्का मिल जाएगा.
हटाएंसही मशविरा दिया है आपने ।
जवाब देंहटाएंहर मशविरा हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण ।
मेरे मशवरे से सहमत होने के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
हटाएंवैसे मेरे मशवरे पर उन लोगों में से कोई अमल नहीं करेगा, जिनको कि यह मशवरा दिया जा रहा है.
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ओंकार जी.
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