गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

नवरात्रि पर माँ के भक्तों को एक मशवरा

हर जगह फ़िल्मी धुनों पर, गीत माँ के गाइए,
रात-दिन माइक लगा कर, शोर भी मचवाइए.
मेवे-फल के ढेर संग, चंदा भी जम कर खाइए,
धर्म-मज़हब की सियासत से, मगर बाज़ आइए.
कौन मुंह खोले-ढके, तालीम से मत जोड़िए,
कैसे, कब, क्या, खा रहा, इसकी फ़िक़र भी छोड़िए.
मुफ़लिसी, महंगाई, बढ़ती जा रही है बे-हिसाब,
असली मुद्दों को भुला, आपस में सर मत फोड़िए.

9 टिप्‍पणियां:

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    1. अनिता जी, मेरा मशवरा सही हो सकता है पर मुझे यह नहीं पता कि मैं जिनको यह मशवरा दे रहा हूँ, उन्हें यह सही लग रहा है या फिर नहीं !

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  2. 'उसकी हंसी' (चर्चा अंक - 4394) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.

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  3. उत्तर
    1. दोस्त, भगत लोग बहुत कूटेंगे तो स्वर्ग-लोक तो पक्का मिल जाएगा.

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  4. सही मशविरा दिया है आपने ।
    हर मशविरा हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण ।

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    1. मेरे मशवरे से सहमत होने के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
      वैसे मेरे मशवरे पर उन लोगों में से कोई अमल नहीं करेगा, जिनको कि यह मशवरा दिया जा रहा है.

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