सोमवार, 25 अप्रैल 2022

मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की नज़्म - रहबर

  आज के नेताओं की असलियत बयान करती हुई मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की एक बहुत ख़ूबसूरत नज़्म पेश है.

कठिन उर्दू शब्दों से अनभिज्ञ, हम जैसे लोगों के लिए, मैंने कठिन शब्दों का हिंदी भावार्थ कोष्ठक में दे दिया है. इस से नज़्म के प्रवाह में बाधा आती है पर उसे समझने में सुविधा हो जाती है.

रहबर (मार्गदर्शक)

 

हमारे अह्द (दौर) के क़ाइद(नेता), हमारे दौर के रहबर,

 

फ़क़त (मात्र) गुफ़्तार (बातचीत) के ग़ाज़ी (शत्रु का विनाश करने वाले), अमल (कार्यान्वयन) से दूर हैं यक्सर (बहुधा).

 

ज़बां पर अम्न (शांति) की बातें, मगर पैकार (युद्ध) के ख़ूगर (अभ्यस्त),

 

कुलाहो, ताजो, दस्तारो, रिदाएं (टोपी, मुकुट पगड़ी और उत्तरीय) बेच देते हैं.

कफ़न भी बेच देते हैं, चिताएं बेच देते हैं,

 

अगर क़ीमत मिले अच्छी, वफ़ाएं बेच देते हैं.

 

ज़रूरत बोलने की हो, ज़ुबां ख़ामोश रहती है,

 

जहां ख़ामोशी वाजिब (उचित) है वहां नारे लगाते हैं.

 

कोई मज़लूम (जिस पर ज़ुल्म हुआ हो) चीख़े तो, समाअत (श्रवण-शक्ति) बहरी है इनकी,

 

लहू निर्दोष का बहता हुआ दिखता नहीं इनको,

 

फ़रस (घोड़ा) इनका, शुतर (ऊँट) इनका, वज़ीर इनका है, फ़ील (हाथी)

इनका,

 

बिसात इनकी है, बाज़ी इनकी, चालें इनकी, खेल इनका,

 

प्यादे मारना, मरवाना ठहरा मशग़लः (व्यवसाय) इनका.

 

न जनता से कोई नाता, न मिल्लत (समाज) से कोई निस्बत (सम्बन्ध),

 

सिंहासन से मुहब्बत, कुर्सी और मिंबर (मस्जिद में इमाम के बैठने की जगह) से है उल्फ़त (प्रेम).

 

किसी भी धर्म के हों, सब यहां पर एक जैसे हैं,

 

न ये ज़म-ज़म (मक्काशरीफ़ के कुँए का पवित्र जल) ) के धोए हैं, न वो गंगा नहाए हैं.

 

अजब हैं ख़्वाहिशें इनकी, अजब इनकी तमन्ना है,

 

सबा (मंद समीर) आए न गुलशन में, यहां पर लू का डेरा हो,

 

चमन में चार सू (चारों ओर), बस, ताइर-ए-शब (उल्लू) का बसेरा हो.

-

5 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ की कसौटी पर खरी उतरती नज़्म ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जिज्ञासा, ऐसा पोल-खोल कार्यक्रम कभी-कभी महंगा भी पड़ जाता है.

      हटाएं
  2. 'संस्कार तुम्हारे' (चर्चा अंक - 4411) में मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की नज़्म शामिल करने के लिए शुक्रिया कामिनी जी.

    जवाब देंहटाएं
  3. नज़र अपनी अपनी ख़्याल अपना अपना, पर रहना इसी दुनिया में है तो हरेक को एक ही लाठी से हांकना ठीक नहीं है, हर जगह अच्छे लोग भी होते हैं, जिनसे यह समाज अब भी एक है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनिता जी, अच्छों नेताओं की बात अलग से की जाएगी यहाँ तो भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों जैसे नेताओं की बात की जा रही है.

      हटाएं