मंगलवार, 25 जनवरी 2022

मक्कारधर पद्धतिः की सीख

 अकृत्वा परसंतापं अगत्वा खलमन्दिरं।

अनुल्लंघ्य सतां वर्त्म यत्स्वल्पमपि तद्बहु:।
शार्ङ्गधर पद्धतिः
(दूसरे को दुख दिये बिना,
दुष्ट के आसरे में जाये बिना,
श्रेष्ठों के मार्ग को त्यागे बिना
जो थोडा ही मिले वह बहुत है।)
हमारे नेताओं के लिए श्री मक्कारधर की सीख -
दूसरे को सुख दिये बिना,
दुष्ट के आसरे को छोड़े बिना,
जालसाज़ों के मार्ग को त्यागे बिना,
अगर स्वर्ग-लोक का राज्य भी मिल जाए तो उस से भी अधिक हड़पने का प्रयास
जारी रखना चाहिए.
मक्कारधर पद्धतिः
संस्कृत के आचार्य मेरे मित्र प्रोफ़ेसर कौस्तुभानंद पांडे द्वारा मेरे अनुरोध पर
मक्कारधर पद्धतिः के उपदेश की संस्कृत श्लोक में अभिव्यक्ति -
परपीडनं कृत्वापि,यल्लभेत् महत्फलम्।
तस्येव भवति साम्राज्यम्,यतो हि घोरकलियुगम्।।,
(दूसरे को पीड़ित करके ही जो महान् फल का भोग करते हैं,उन्हीं का साम्राज्य
होता है, यही कलियुग की घोर नियति है।)

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-01-2022) को चर्चा मंच "मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" (चर्चा-अंक4322) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. 'मनाएं कैसे हम गणतंत्र' (चर्चा अंक - 4322) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  3. मित्र, 'सत्य वचन' पर तो हमको - 'सांच कहो तो मारन धावे' याद रखना चाहिए.

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    1. धन्यवाद मित्र !
      जब कुछ भी ठीक नहीं हो तो फिर ऐसी कड़वी डोज़ ही सटीक बैठती है.

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  5. व्यंग्य की तीक्ष्ण धार सार्थक रचना
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद अभिलाषा जी.
      गणतंत्र-दिवस की आपको भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !

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  6. बिल्कुल सही कहा आपने!
    बहुत ही तीखा व्यंग्य कसा है आपने आदरणीय!
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ व बधाई

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद मनीषा !
      गणतंत्र-दिवस की तुमको भी बधाई !
      हमारा तो शायद सच्चा गणतंत्र देखे बिना टिकट कट जाए पर तुम युवा पीढी के लोग सच्चा गणतंत्र देखो और उसका सुख भी भोगो, यही मेरी शुभकामना है.

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  7. बहुत ही धारदार व्यंग और कटाक्ष लिख रहे हैं,सब के वश की नहीं । चुनाव की जय हो । आपको मेरा सादर नमन ।

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    1. जिज्ञासा, धारदार व्यंग्य का इन चिकने घड़ों पर भी कुछ असर हो तो कोई बात बने.
      चुनाव की की जय मैं तो नहीं बोलूँगा. नागनाथ, सांपनाथ, विभीषणनाथ, भस्मासुर नाथ आदि में से किसी को भी चुनने से क्या हासिल होने वाला है?

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