दल-बदल लीला रचाई जाएगी फिर से यहाँ
भौंक भाई को छुरा दुश्मन से लग जाओ गले
स्वर्ण-लंका फिर विभीषण हाथ आएगी यहाँ
टिकट मिलेगा कि नहीं?
मित्र, तुम्हारी जगह तुम्हारे पड़ौसी को टिकट दिलवा दिया है. अब तुम इसी बात पर संतोष कर लो.
जी नमस्ते ,आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (११-०१ -२०२२ ) को 'जात न पूछो लिखने वालों की'( चर्चा अंक -४३०६) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
'जात न पूछो लिखने वाले की' (चर्चा अंक - 4306) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
बहुत ही लाजवाब...!
धन्यवाद मनीषा ! वैसे लाजवाब क्या? विभीषण की पाला-बदली या फिर मेरे उद्गार?
विभिषण तो आप हमारे यहाँ भिजवा रहे थे, बाकी देश सुरक्षित हो जायेगा।सादर।
कुसुम जी, मैं तो पाला-बदलुओं को लंका का राज क्या, एक खोली भी दूं. वैसे आप निश्चिन्त रहिए. मजाक की बात थी, मैं आपको कोई विभीषण नहीं दूंगा.
चुनावी त्रासदी... सुंदर अभिव्यक्ति!
भट्ट जी, चुनाव के पहले विभीषण पधार चुके हैं. यह तो आगाज़ है, अंजाम तक तो वो सैकड़ा पार कर लेंगे.
वाह...चार लाइनों में सारा लब्बोलुआब कह दिया आपने
प्रशंसा के लिए धन्यवाद अलकनंदा जी ! मैं मूलतः कवि नहीं हूँ इसलिए अपनी काव्यात्मक व्यंग्य-रचनाओं को आमतौर पर चार पंक्तियों में ही समेटने की कोशिश करता हूँ.
बहुत ही सार्थक और यथार्थपरक भी🙏🙏
नमस्कार जैसवाल जी, क्या गजब बात कही है कि आज – ‘मन चंगा’ वालों का नहीं, ‘मन नंगा’ वालों का ज़माना है...वाह
टिकट मिलेगा कि नहीं?
जवाब देंहटाएंमित्र, तुम्हारी जगह तुम्हारे पड़ौसी को टिकट दिलवा दिया है. अब तुम इसी बात पर संतोष कर लो.
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (११-०१ -२०२२ ) को
'जात न पूछो लिखने वालों की'( चर्चा अंक -४३०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
'जात न पूछो लिखने वाले की' (चर्चा अंक - 4306) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
हटाएंबहुत ही लाजवाब...!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनीषा !
हटाएंवैसे लाजवाब क्या? विभीषण की पाला-बदली या फिर मेरे उद्गार?
विभिषण तो आप हमारे यहाँ भिजवा रहे थे, बाकी देश सुरक्षित हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंसादर।
कुसुम जी, मैं तो पाला-बदलुओं को लंका का राज क्या, एक खोली भी दूं.
हटाएंवैसे आप निश्चिन्त रहिए. मजाक की बात थी, मैं आपको कोई विभीषण नहीं दूंगा.
चुनावी त्रासदी... सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंभट्ट जी, चुनाव के पहले विभीषण पधार चुके हैं. यह तो आगाज़ है, अंजाम तक तो वो सैकड़ा पार कर लेंगे.
हटाएंवाह...चार लाइनों में सारा लब्बोलुआब कह दिया आपने
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद अलकनंदा जी !
हटाएंमैं मूलतः कवि नहीं हूँ इसलिए अपनी काव्यात्मक व्यंग्य-रचनाओं को आमतौर पर चार पंक्तियों में ही समेटने की कोशिश करता हूँ.
बहुत ही सार्थक और यथार्थपरक भी🙏🙏
जवाब देंहटाएंनमस्कार जैसवाल जी, क्या गजब बात कही है कि आज – ‘मन चंगा’ वालों का नहीं, ‘मन नंगा’ वालों का ज़माना है...वाह
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