मंगलवार, 17 मई 2022

राहुल भट्ट की बेवा को बधाई

(आज से लगभग 35 साल पहले, इस कविता की रचना, देश में बढ़ती हुई आतंकवादी घटनाओं को रोक पाने में असमर्थ सरकार से दुखी हो कर की गयी थी.
पहले यह कविता किसी और की बेवा के लिए लिखी गयी थी और आज इसे राहुल भट्ट के बेवा के लिए कहा जा रहा है.

सवाल यह उठता है कि इतने अर्से बाद भी यह कविता आज भी प्रासंगिक क्यों है.)

अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई !

अखबारों में चित्र छपेंगे, पत्रों से घर भर जाएगा,
मंत्री स्वयम् सांत्वना देने, आज तिहारे घर आएगा.
सरकारी उपहार मिलेंगे, भाग्य कमल भी खिल जाएगा,
पिता गए हैं स्वर्ग जान कर, पुत्र गर्व से मुस्काएगा.
विधवा ! रोती इसीलिए क्या, तेरी माँग उजड़ जाएगी?
जल्दी ही सूने माथे की, तुझको आदत पड़ जाएगी.
यह उदार सरकार, दया के बादल तुझ पर बरसाएगी,
थैली भर रुपयों के बदले, तेरी बिंदिया ले जाएगी.
छाती पीट रही क्यों पगली, अभी कर्ज़ यम के बाकी हैं,
यहाँ मौत का जाम पिलाने पर आमादा, सब साक़ी हैं.
बकरों की माँ खैर मना ले, यहाँ भेड़िये छुपे हुए हैं,
कुछ ख़ूनी जामा पहने हैं, पर कुछ के कपड़े ख़ाकी हैं.
मृत्यु सभी की अटल सत्य है, फिर क्यों छलनी तेरा सीना?
बाट जोहने की पीड़ा से मुक्ति मिली, क्यों आँसू पीना?
बच्चों की किलकारी का कोलाहल तुझको कष्ट न देगा,
शांत, सुखद, श्मशान-महीषी, बन, आजीवन सुख से जीना.
अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई,
आम सुहागन से तू, बेवा ख़ास हुई है, तुझे बधाई.

25 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार ऐसा हुआ कि आपकी रचना मुझे अच्छी नहीं लगी। सारी व्यंग्योक्तियाँ ठीक हैं और कटाक्ष तीखे, परंतु 'बधाई' शब्द कुछ ठीक नहीं लगा।
    वैसे भी इन जहर बुझे कटाक्षों से जिनके सीने पर चोट लगना चाहिए उनके सीने तो वज्र के बने हैं। जिनको मर जाना चाहिए वे तो मरेंगे नहीं। मरेगा फिर कोई राहुल भट्ट ही।

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    1. मीना जी, एक झकझोरने वाली त्रासदी पर पीड़िता को बधाई देने का गुनाह करना वाक़ई अक्षम्य है लेकिन दरअसल मैं उन रुग्ण मानसिकता के गद्दीनशीन लोगों को बधाई देना चाहता था जिनके लिए बड़े से बड़ा हादसा भी केवल अपने प्रचार का सु-अवसर होता है.
      राहुल भट्ट जैसे अभी न जाने कितने और मारे जाएंगे और हमको-आपको न जाने कितनी बार यह सुनना पड़ेगा -
      'हम ऐसी नापाक हरक़त अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे और दहशतगर्दी को हम कुचल कर रहेंगे.'

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    1. मेरी कविता की प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनिता जी.

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  3. 'मौसम नैनीताल का' (चर्चा अंक - 4434) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  4. आपने ऊपर मिना जी को जवाब में लिखा कि रुग्ण मानसिकता वालों पर कटाक्ष है ।लेकिन किसी सैनिक या आम आदमी जो आतंक का शिकार हुए उसकी विधवा के लिए थोड़ा संवेदनशील होना चाहिए था ।
    यूँ भाव अच्छे हैं ।

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    1. संगीता जी, ऐसे हादसों पर संवेदनशीलता के नमूने बताता हूँ -
      1. हमारी सरकार ने शहीदों के परिवारों को जितना मुआवजा दिया है, उतना किसी और सरकार ने कभी नहीं दिया है.
      2. इस हादसे की सबसे पहले ख़बर हमारे न्यूज़ चैनल ने दी है.
      3. इन हादसों के पीछे टुकड़े-टुकड़े गैंग का हाथ है.

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    2. जी , ये आप सही कह रहे हैं । लेकिन हम न्यूज़ ऐंकर नहीं हैं न , और न ही नेता ।

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    3. संगीता जी, काश कि आप जैसे न्यूज़ एंकर और नेता होते तो फिर मुझको ऐसी गुस्ताख कविता लिखने की कभी सूझती भी नहीं.

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  5. व्यंगात्मक कटु सत्य।

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    1. ज्योति, दिल से निकली आह से उपजी और व्यंग्य से अधिक आक्रोश से युक्त, इस कविता में सिर्फ़ सच है और उसके अलावा कुछ भी नहीं.

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  6. मर्मान्तक कटाक्ष! दिल को बेधती हुई!!!

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    1. धन्यवाद मित्र. बड़ी राहत मिली यह जान कर कि तुम मीना जी की तरह और संगीता जी की तरह, मुझ पर असंवेदनशील होने का इल्जाम नहीं लगा रहे हो.

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    2. आदरणीय सर, मैं आप पर असंवेदनशील होने का इल्जाम नहीं लगा रही। आपको बुरा लगा हो तो कृपया क्षमा करें। मेरी एक गंदी आदत है - पड़ोस में/समाज में कोई ऐसी दुःखद घटना/ दुर्घटना घटती है तो मैं कहीं ना कहीं यह सोचने लगती हूँ कि यह मेरे साथ होता तो ? इसी से मैंने लिखा कि 'बधाई' शब्द ठीक नहीं लगा। व्यंग्य कभी कभी इतना तीखा होना माँगता है कि आँखों से पानी निकाल दे। आपने व्यंग्य की परंपरा का निर्वाह किया, आप अपनी जगह सही हैं और मैं अपनी जगह। कृपया इसे इल्जाम ना समझें।

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    3. मीना जी, 'निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय'
      मेरे घर का आँगन तो इतना बड़ा नहीं है कि मैं आपके लिए या किसी और निंदक के लिए कुटी छवा सकूं पर मेरा दिल ऐसा चाहता ज़रूर है.
      व्यंग्य और आक्रोश कभी-कभी बहुत बेरहम और निर्मम हो जाता है. इस कविता में दोनों ही कुछ ज़्यादा हो गए हैं पर किसी के दुःख में हंसने-मुस्कुराने की निर्ममता मुझ से क़तई नहीं हुई है.
      आपकी और संगीता जी की भावना का मैं सम्मान करता हूँ. अपने विचारों से असहमत होने पर किसी को राष्ट्रविरोधी ठहराने का मेरा कोई इरादा नहीं है.

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  7. मुझे भी यह रचना अच्छी नहीं लगी सर। बेवा पर ऐसे कटाक्ष, यों लगा जैसे किसी ने चाबुक जड़ दिए हों। ऐसे वक़्त पर बधाई शब्द कटाक्ष नहीं उपहास है। आपको अपने हर किरदार के साथ न्याय करना चाहिए।
    सादर

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    1. स्पष्टवादिता के लिए धन्यवाद अनीता.
      नारी के कोमल ह्रदय में मेरे जैसे कठोर व्यक्ति के विचार आ ही नहीं सकते लेकिन यदि तुम इस कविता को गहराई में जा कर समझने की कोशिश करोगी तो -'बधाई' शब्द के पीछे हुक्मरानों के प्रति मेरे आक्रोश, मेरी कुंठा और पीड़िता के प्रति मेरी संवेदना को जान पाओगी.

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    2. ठीक है सर गहराई से पढ़कर प्रतिक्रिया करती हूँ।
      सादर

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    3. ठीक है. तुम इस कविता के शब्दों को अनदेखा कर, गहराई से इसमें निहित भाव को देखो फिर इमानदारी से अपनी प्रतिक्रिया दो.
      प्रतिक्रिया देते समय मेरी उम्र का लिहाज़ मत करना.

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    4. अच्छी है सर परंतु बड़ी तकलीफ़ देह लगी। एक सच जो मन मानने को तत्पर नहीं। आम जन को नेताओं का मोह छोड़ना पड़ेगा, एक प्रहार सा लगा।
      आपने जो जो लिखा वह सच है परंतु एक बेवा ऐसे नहीं चाहती। उस वक़्त मान सम्मान, नेता राजनेता बड़े चुभते है यहाँ तक की अपनों की सांत्वना भी चुभने लग जाती है।
      एक रचना ऐसे कहो सर इन सभी को कि तुम्हें बधाई एक बेवा मिली ये सब खेल रचाने को...
      माफ़ी चाहती हूँ सर।
      कभी कभी एक लेखक जो पीड़ा पी ता है वह हम नहीं पी सकते।
      मन की बात कहूँ समाज में बेवा को ऐसे समाज तनों से नवाजता है शायद वही दिमाग़ में बैठे है।

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    5. अनीता, तुम शायद न्यूज़ चैनल ज़्यादा नहीं देखती हो. हर न्यूज़ चैनल पर राहुल भट्ट की पत्नी को रोते-बिलखते हुए और सर धुनते हुए देख कर, मुझे अपनी यह पुरानी कविता पोस्ट करने की सूझी थी.
      हमारे देश में विधवा को, अगर वह बूढ़ी और लाचार है तो समाज उस पर ज़ुबानी तरस खाता है और नाते-रिश्तेदार उसके साए से भी बचते हैं. अगर वो धनवान हैं तो अनजाने तक उसके धन पर गिद्ध-दृष्टि रखते हैं. अगर वह जवान है, सुन्दर है, तो फिर लोग उसके बारे में क्या-क्या करते हैं, क्या-क्या सोचते हैं, इसे बताने पर मेरी भाषा पर तुम्हें फिर ऐतराज़ हो सकता है.

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  8. आदरणीय सर, सादर अभिवादन!
    नया फोन लिया है उसमे ब्लॉग का कॉमेंट ऑप्शन चलते चलते गूगल ने अचानक लॉक कर दिया ।
    अब साइन इन मांग रहा । वो मुझसे हो नहीं रहा अतः पोस्ट पढ़ते ही ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं कर पाती।
    बेटा आने वाला है फिर वो सही करेगा ।
    ये टिप्पणियां दूसरे फोन से करती हूं।
    ... आपकी ये कविता मुझे भी पढ़ते ही "बधाई" शब्द ने झकझोरा था । और अंदर से अच्छा नहीं लगा बधाई शब्द ।मेरे ख्याल से इस शब्द की जगह आप कोई और शब्द रखकर भी व्यंग और कटाक्ष लिख सकते थे । लेकिन आपने पीड़ा और दर्द के भावातिरेक में यह सृजन किया होगा । ऐसा लगता है ।
    यथार्थ की कसौटी और राजनीतिक परिदृश्य में यह कविता खरी उतरती है परंतु एक रिश्ते और भावों का मूल्यांकन करने पर ये बधाई शब्द दर्द दे जाता है ।
    मुझे आपके लेखन में कभी भी स्त्री के संदर्भ में क्षीणता नहीं दिखी है हमेशा उसके मनोभावों को एक नव आयाम मिलता दिखता है।
    एक संवेदनशील मर्म को छूती कविता के लिए आपका आभार।

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    1. जिज्ञासा, इस 'बधाई' शब्द ने मेरी अच्छी छीछालेदर कराई है. ख़ास कर महिलाओं ने तो मेरी असंवेदनशीलता के लिए मेरी खुल कर भर्त्सना की है.
      जब बहुमत मेरे विचारों के खिलाफ़ है तो फिर मैं कुसूरवार ही ठहराया जाऊँगा और मुझे बहुमत का सम्मान करना ही होगा.
      वैसे इस कविता में - 'बधाई' शब्द का प्रयोग करते समय मेरी ऑंखें भर आई थीं.
      इस कविता की अंतिम पंक्ति -
      'आम सुहागन से तू, बेवा ख़ास हुई है, तुझे बधाई !'
      लिखने के लिए भले ही कोई मुझे फांसी पर लटका दे पर यह पंक्ति मेरे दिल के बहुत करीब है.

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