1988 की बात होगी. हमारे इतिहास विभाग में एक 22-23 साल का एक ख़ूबसूरत नौजवान मेरे पास आया.
उस नौजवान ने मुझे अपना परिचय दिया. सिराज अनवर नाम का यह नौजवान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मध्यकालीन भारतीय इतिहास के एक विषय पर शोध कर रहा था.
एक अच्छी बात यह थी कि उसे शोध-कार्य के लिए फ़ेलोशिप मिल रही थी पर एक बुरी बात यह थी कि वह पिछले कुछ महीनों से विभागीय राजनीति का शिकार हो गया था. कुछ विभागीय परेशानियाँ और कुछ होम-सिकनेस की वजह से अब वह चाहता था कि वह अपना बाक़ी शोध-कार्य, मेरे निर्देशन में, अल्मोड़ा रह कर करे.
मैंने सिराज अनवर को ख़ुद को नई-नई मुश्किलों में डालने के बजाय पुरानी समस्याओं को सुलझाने की सलाह दी. उसको मेरी दोस्ताना सलाह पसंद आई. दो-तीन महीने के अन्दर ही उसकी एएमयू वाली समस्या का समाधान हो गया.
सिराज अनवर का हमारे विभाग से नाता तो बनते-बनते रह गया लेकिन मेरे भतीजे-भांजे की उम्र का यह लड़का मेरा दोस्त बन गया.
रिफ्रेशर कोर्स के और एक वर्कशॉप के सिलसिले में, एएमयू में मेरे दो प्रवास हुए.
अलीगढ़ में सिराज से मेरी रोज़ाना मुलाक़ात होती थी. हम रोज़ाना शाम को साथ-साथ घूमा करते थे.
सिराज अनवर ने उर्दू पत्रकारिता में सामाजिक चेतना विषयक शोध-सामग्री एकत्र करने में मेरी बड़ी मदद की थी.
हम लोग कई सेमिनार्स और कई कांफेरेंसेज़ में भी साथ-साथ गए थे.
सिराज के वालिद अब्दुल शकूर साहब तहसीलदार के पद पर रानीखेत में पोस्टेड थे. अपने रिटायरमेंट से कुछ साल पहले उन्होंने अपना तबादला अल्मोड़ा के लिए करा लिया और फिर उन्होंने अल्मोड़ा में ही रहने का फ़ैसला कर लिया.
अब्दुल शकूर अंकल से भी मेरी दोस्ती हो गयी थी. हम दोनों को किस्सागोई का शौक़ था. सिराज भी अपनी नफ़ीस उर्दू ज़ुबान में बड़े दिलचस्प किस्से-कहानियां सुनाया करता था.
मेरी श्रीमती जी को और मेरी दोनों नन्हीं-नन्हीं बेटियों को भी सिराज अनवर से मिलना बहुत अच्छा लगता था. मेरी बेटियों को आमिर खान जैसे लगने वाले सिराज अंकल बहुत पसंद थे. सिराज मेरी बेटियों के साथ बिलकुल बच्चा बन जाता था. अपने हर अल्मोड़ा प्रवास में वह हमारे घर कई बार आता था. उसे मेरी श्रीमती जी के हाथ के बने पकवान बहुत अच्छे लगते थे और मेरी बेटियों को उसके लाए हुए चौकलेट्स ! न जाने कितनी बार उसने मेरे परिवार के साथ टीवी पर आ रहे वन डे मैच देखे होंगे.
रमज़ान के दिनों में तीस दिन रोज़ा रखने वाला सिराज खुदा-परस्त लेकिन थोड़ा कट्टर किस्म का मुसलमान था.
होली के एक दिन बाद एक बार सिराज हमारे घर आया. होली तो बीत चुकी थी पर मेरी दोनों बेटियां पानी भरे गुब्बारे ले कर सिराज अंकल की खातिर करने के लिए खड़ी हो गईं.
मुझे पता था कि सिराज होली नहीं खेलता था. मैंने उन्हें रोकते हुए उन्हें समझाया -
'बालिकाओं ! तुम्हारे सिराज अंकल होली-विरोधी हैं. ये तुम्हारे साथ होली नहीं खेलेंगे.'
मेरी छोटी बेटी रागिनी ने एक सवाल कर डाला –
‘तो फिर इन होली-विरोधी अंकल ने हमारी गुझिया क्यों खाईं?’
दो-तीन सेकंड्स में सिराज अंकल पर आधा दर्जन पानी वाले गुब्बारे फोड़े जा चुके थे. और सिराज अंकल थे कि बच्चों की शरारतों में पूरी तरह शामिल होने के लिए हमारे घर के पास की एक दुकान से गुब्बारों का एक और बड़ा पैकेट खरीद कर ले आए थे.
अगले एक घंटे तक पानी के गुब्बारों के पचासों बम फोड़े गए. इस धमा-चौकड़ी में सिराज मेरी दोनों बेटियों से हर हाल में इक्कीस ही साबित हुआ था.
1993-4 में सिराज अपने अल्मोड़ा प्रवास में मुझ से मिलने हमारे विभाग में कुछ ज़्यादा ही आने लगा था. मैंने इसकी वजह पूछी तो वह बात टाल गया . पर मेरे धमकियाने पर उसने कुबूला कि हमारे विभाग की एम० ए० फ़ाइनल की मेरी छात्रा शाहिदा खान से उसकी शादी तय हो गयी है.
सिराज-शाहिदा की शादी में हमारा पूरा परिवार शामिल हुआ. उनकी जोड़ी हमारे परिवार को बहुत ही अच्छी लगती थी. इन दोनों की शादी के बाद हमारी पारिवारिक घनिष्ठता और भी बढ़ गयी.
शाहिदा अपने उस्ताद का, यानी कि मेरा तो बहुत लिहाज़ करती थी पर वह मेरी श्रीमती जी से और मेरी बेटियों से, बहुत घुल-मिल गयी थी. होली-दिवाली पर सिराज-शाहिदा हमारे यहाँ ज़रूर आते थे और हम लोग उनके यहाँ ईद पर ज़रूर जाते थे. सिराज के घर ईद पर मुझ मधुमेह के रोगी के लिए शुगर फ़्री वाली सेवैयाँ ज़रूर बनाई जाती थीं.
एनसीआरटी में लेक्चरर हो कर सिराज अनवर की पोस्टिंग भोपाल हो गयी. उसने मुझे कई बार भोपाल बुलाया पर किसी न किसी कारण से मेरा वहाँ जाना नहीं हो पाया. पांच साल बाद उसकी पोस्टिंग दिल्ली हो गयी.
सिराज भी मेरी तरह डायबिटीज़ का शिकार हो गया था. मीठे के महा-शौक़ीन उस शख्स को मिठाइयों को अलविदा कहना पड़ा पर हमारे घर आ कर वह मेरी श्रीमती जी के हाथ के बने पकवान ज़रूर खाता था.
अपने रिटायरमेंट के बाद जब मैं ग्रेटर नॉएडा में सैटल हो गया तो उसके बाद सिराज से हमारा मिलना सिर्फ़ एक बार हुआ.
तब तक सिराज प्रोफ़ेसर हो गया था. हम दिल्ली में उसके एनसीआरटी वाले फ्लैट में उस से मिलने गए थे.
लेकिन फ़ोन पर हमारी बातें अक्सर होती रहती थीं. मेरी श्रीमती जी और शाहिदा भी तीज-त्यौहार पर एक दूसरे से बातें कर लेती थीं.
सिराज आमतौर पर ईद का जश्न अल्मोड़ा जा कर ही मनाता था. पिछले साल ईद पर, 14 मई को, मैंने उसे मुबारकबाद देने के लिए फ़ोन किया तो उसने फ़ोन नहीं उठाया.
दो घंटे बाद जब मैंने उसे फिर फ़ोन किया तो जवाब शाहिदा ने दिया.
मैंने शाहिदा को ईद की मुबारकबाद दी तो फफक-फफक कर रोते-रोते उसने मुझे शुक्रिया कहा. मैंने घबरा कर उस से परिवार का कुशल-मंगल पूछा तो उसने बताया कि 28 अप्रैल, 2021 को सिराज कोरोना की दूसरी लहर का शिकार हो गया था.
इस बार रमज़ान में सिराज अल्मोड़ा नहीं जा पाया था. वह दिल्ली में ही था.
रोज़े और नमाज़ का पाबन्द सिराज अपने मज़हबी फ़रायज़ निभा रहा था कि इसी दौरान तीन दिन की छोटे से वक्फ़े में उस ने घर से अस्पताल तक का और फिर वहां से कब्रिस्तान तक का सफ़र तय कर लिया.
सिराज को हमसे बिछड़े एक साल से ज़्यादा का वक़्त हो गया है पर ऐसा लगता ही नहीं कि वह अब इस दुनिया में नहीं है. हमारा अज़ीज़ दोस्त हम से बिछड़ ज़रूर गया है पर हमारे दिल में वो आज भी बसा है.
27 अप्रैल को सिराज की बरसी से एक दिन पहले फ़ोन पर शाहिदा से मेरी श्रीमती जी की और मेरी बात हुई थी. हम ने दुनिया भर की बातें कीं पर हर बार बात घूम-फिर कर सिराज की तरफ़ ही मुड़ जाती थी.
आज ईद है . आज मुस्कुराते हुए सिराज की तस्वीर मेरी आँखों के सामने तैर रही है और मुझे रह-रह कर मीना कुमारी का यह शेर याद आ रहा है -
'न हाथ थाम सके, न पकड़ सके दामन,
बड़े क़रीब से, उठ कर, चला गया कोई.'
अपने सभी मुसलमान दोस्तों को मैं ईद पर मुबारकबाद देता हूँ . लेकिन सच कहूँ तो पिछले साल ईद पर सिराज को फ़ोन करने के बाद मुझे जो धक्का लगा था उस से मैं आज तक उबर नहीं पाया हूँ. इस बार शाहिदा को ईद मुबारक कहने की न तो मेरी हिम्मत है और न ही मेरी श्रीमती जी की.
इस ईद पर मैं जन्नतनशीन सिराज अनवर को ईद की मुबारकबाद देने के लिए न तो उसके घर जा सकता हूँ और न ही उस से फ़ोन पर बात कर सकता हूँ पर मुझे यकीन है कि मेरे दिल से निकली ईद की मेरी मुबारकबाद उसकी रूह तक ज़रूर पहुँच जाएगी.
तो ऐ मेरे बिछड़े हुए दोस्त ! तुम्हें ईद मुबारक !
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2022) को चर्चा मंच नाम में क्या रखा है? (चर्चा अंक-4420) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
नाम में क्या रखा है' (चर्चा अंक - 4420) में मेरे संस्मरण को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक. आप सबको ईद मुबारक और अक्षय तृतीया की बधाइयाँ !
हटाएंभावपूर्ण नमन शिराज जी के लिए ईद मुबारक सभी को
जवाब देंहटाएंहमारे सभी मुस्लिम मित्रों को ईद मुबारक !
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मनोज कायल जी.
हटाएंहृदय स्पर्शी संस्मरण।
जवाब देंहटाएंआपकी हर कृति जीवंत होती है।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी. सिराज हमारे परिवार के लिए घर के सदस्य जैसा था. उसका जाना मुझे अन्दर तक हिला गया है. ईद के दिन उसकी बहुत याद आई तो डेस्क टॉप के की बोर्ड पर मेरी उँगलियाँ अपने आप चलने लगीं.
हटाएंदिल को छू जाने वाला संस्मरण... सिराज जी को विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास नैनवाल अंजान जी. सच्चे दोस्त के बिछड़ जाने के बाद ज़िंदगी में बहुत खालीपन आ जाता है.
हटाएंये ऐसे ही कुछ रिश्ते हैं जो हमारी सामाजिक संरचना और सद्भाव को समृद्ध कर हमें आत्मीयता से ओतप्रोत रखते हैं।
जवाब देंहटाएंमन को छूता सुंदर संस्मरण।
धन्यवाद जिज्ञासा. दोस्त बनाते समय मैंने जात-पांत और धर्म-मज़हब को कभी बीच में नहीं आने दिया.
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