शनिवार, 8 जनवरी 2022

सर्दी के मौसम में चुनावी सरगर्मियां

अगर दुष्यंत कुमार नहीं समझाएं तो हर कोई यही समझेगा कि आम आदमी उनके सजदे
में झुका है.
उसने रैली में फ़क़त, मज़हब-धरम की बात की,
ये न पूछा किस के घर चूल्हा जला, अरमां नहीं !
दीन-ईमां बिक रहे हैं, अब चुनावी हाट में,

सच, वफ़ा, इंसानियत का, पर कोई सामां नहीं ! 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 09 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. 'पांच लिंकों का आनंद' के रविवार, 9-1-22 के अंक में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

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  3. 'वो अमृता जिसे हम अंडरएस्टीमेट करते रहे' (चर्चा अंक - 4304) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.

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  4. तारीफ़ के लिए शुक्रिया मनीषा !
    हम-तुम इन चिकने घड़ों पर चाहे जितने भी छींटे मारें, इन पर कोई भी असर नहीं होने वाला.

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  5. बहुत सार्थक रचना! हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  6. धारदार लेखनी, हमेशा की तरह रोष के सार्थक स्वर।
    असाधारण।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी !
      वैसे किसी की धारदार लेखनी की चोट तो इन धूर्तों के सिर्फ़ गुदगुदी कर सकती है, इस से ज़्यादा और कुछ नहीं !

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  7. बिलकुल सारगर्भित प्रश्न करती आपकी कलम का अभिनंदन ।
    काश की कलम की आवाज नेताओं तक पहुंचे ।

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  8. तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा !
    हमारी कलम की यह आवाज़ अगर नेताओं तक पहुँच गयी तो फिर हम काल-कोठरी तक पहुँच जाएँगे.

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