रविवार, 2 जनवरी 2022

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर, वो कहाँ हैं?

 मुस्लिम महिलाओं की नीलामी कराने वाले एप – ‘बुली बाय’ के पुनर्पदार्पण पर

सुश्री सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर रचना – 'झांसी की रानी' की तर्ज़ पर चंद
पंक्तियाँ -
कमसिन दुख्तर सिसक रही थी, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनकी इज्ज़त-अस्मत बिकती, फूला-फला देह-व्यापार.

सरे आम नीलाम छापते, संस्कृति-रक्षक, लाज-उतार,

'रूप-हाट फिर सजी हुई है, मत चूको मौक़ा इस बार !’

नैतिकता की उड़ीं धज्जियाँ, पाप-ध्वजा फहरानी थी,
दुश्शासन के दुष्कर्मों की, कथा पुनः दोहरानी थी.

चिर-निद्रा में लीन सुशासन, उसकी लाश उठानी थी,

जगद्गुरु के अधोपतन की, हमने सुनी कहानी थी.

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कठिन समय की बहुत कठिन डगर है। आप कह दे रहे हैं बहुत है।

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    1. दोस्त, पतन के गर्त में जाने वाली डगर कठिन नहीं होती !
      सर्र से गिरते जाओ और संस्कृति-रक्षण के गीत गाते जाओ.

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  2. मुस्लिम महिलाओं की नीलामी कराने वाले एप – ‘बुली बाय’ के पुनर्पदार्पण पर

    ऐसा भी कुछ है !!! ...... अत्यंत शर्मनाक ...

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    1. संगीता जी, जब किसी ने शर्मो-लिहाज़ बेच कर अपनी नाक पहले ही कटवा ली हो तो फिर उसके लिए कुछ भी शर्मनाक कहाँ रहा?

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-01-2022 ) को 'नेह-नीर से सिंचित कर लो,आयेगी बहार गुलशन में' (चर्चा अंक 4298) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. 'नेह-नीर से सिंचित कर लो, आएगी भार गुलशन में' (चर्चा अंक - 4298) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

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  4. शब्द नहीं हैं कहें तो क्या कहें।
    कैसी समय की मार है
    हमेशा औरतों पर ही किया वार है।

    सादर प्रणाम सर।

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    1. अनीता,
      हम तो इन सबको किसी चौराहे पर फांसी के फंदे में लटका हुआ देखना चाहते हैं.

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  5. सच कुछ कहने को नहीं बचता है ऐसा कुछ पढ़कर,जानकर ।
    इस तरह की धृष्टता देश को ही गर्त में ले जाती है.. चिंतनपूर्ण विषय..

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    1. जिज्ञासा, द्रोपदी का चीर-हरण कायर धृतराष्ट्र, भीष्म, द्रोणाचार्य आदि के सामने नित्य होता है और इसमें हमारी भूमिका तो हमेशा मूक-दर्शक बने पांडवों की ही रहती है.

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  6. उत्तर
    1. मेरे विचारों से सहमत होने के लिए धन्यवाद मनोज कायल जी.

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