हरी, सफ़ेद हो या लाल, नीली, भगवा हो,
पहन ले कोई भी टोपी, वो हमको ठगता है,
अजीब क़ायदा चलता, यहाँ सियासत में,
अगर ज़मीर सुलाओ, तो भाग्य जगता है.
ये सियासत के रंग हैं ।
संगीता जी, सियासत का तो बस एक ही रंग होता है और वह है काला रंग.
जय हो।
कल वोट देने जा रहा हूँ. मैं चाहता हूँ कि किसी भी ठग-चोर-डाकू की जय न हो.
'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
सही कहा आदरणीय ,ज़मीर सुलाओ ,तभी भाग्य जागता है ।
शुभा जी, अति टेढ़ो सियासत मारग है, यहाँ साँचेन को कोऊ काम नहीं !
राजनीति इसी का नाम है
अनिता जी, मेरे यह कभी समझ नहीं आता कि जिसमें अनीति ही अनीति हो, उसे राजनीति क्यों कहते हैं.
राजनीति में हमेशा ऐसे ही रंग रहेंगे । इसका कोई इलाज नहीं ।
जिज्ञासा, राजनीति में कोई और रंग नहीं, सिर्फ़ काला रंग होता है.
बिन भांग वाला कुआँ खोजें कैसे??जबरदस्त!!!
कुसुम जी, राजनीति से अनभिज्ञ किसी गरीब का कुआँ आपको बिना भांग वाला मीठा पानी देगा.
सटीक बात आदरणीय गोपेश जी। भला सत्ता सुख में ज़मीर की गुंजाईश ही कहां है!!🙏🙏
नेताओं के ज़मीर का क्या है रेणुबाला, अगर इनका ज़मीर टका सेर बिकता है तो जब उसकी ज़रुरत पड़े तो उसे बाज़ार में थोक के भाव खरीद भी सकते हैं.
बहुत सटीक व्यंग, गोपेश भाई। राजनीति के रंग निराले ही होते है।
ज्योति, राजनीति में सोने और चांदी के सुनहरी और सफ़ेद रंग हैं, खून का लाल रंग है और काले कारनामों का काला रंग है.
सटीक, सामयिक और करारा व्यंग ...
मेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिगंबर नासवा जी.
सही कहा आपने एकदम.. जमीर सुलाकर ही भाग्य जगता...
ज़मीर सुलाओ और विवेक का तो खून ही कर दो. बस, फिर ऊंची से ऊंची कुर्सी तक पहुँच जाओ.
ये सियासत के रंग हैं ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, सियासत का तो बस एक ही रंग होता है और वह है काला रंग.
हटाएंजय हो।
जवाब देंहटाएंकल वोट देने जा रहा हूँ. मैं चाहता हूँ कि किसी भी ठग-चोर-डाकू की जय न हो.
हटाएं'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंसही कहा आदरणीय ,ज़मीर सुलाओ ,तभी भाग्य जागता है ।
जवाब देंहटाएंशुभा जी,
हटाएंअति टेढ़ो सियासत मारग है, यहाँ साँचेन को कोऊ काम नहीं !
राजनीति इसी का नाम है
जवाब देंहटाएंअनिता जी, मेरे यह कभी समझ नहीं आता कि जिसमें अनीति ही अनीति हो, उसे राजनीति क्यों कहते हैं.
हटाएंराजनीति में हमेशा ऐसे ही रंग रहेंगे । इसका कोई इलाज नहीं ।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा, राजनीति में कोई और रंग नहीं, सिर्फ़ काला रंग होता है.
हटाएंबिन भांग वाला कुआँ खोजें कैसे??
जवाब देंहटाएंजबरदस्त!!!
कुसुम जी, राजनीति से अनभिज्ञ किसी गरीब का कुआँ आपको बिना भांग वाला मीठा पानी देगा.
हटाएंसटीक बात आदरणीय गोपेश जी। भला सत्ता सुख में ज़मीर की गुंजाईश ही कहां है!!🙏🙏
जवाब देंहटाएंनेताओं के ज़मीर का क्या है रेणुबाला, अगर इनका ज़मीर टका सेर बिकता है तो जब उसकी ज़रुरत पड़े तो उसे बाज़ार में थोक के भाव खरीद भी सकते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग, गोपेश भाई। राजनीति के रंग निराले ही होते है।
जवाब देंहटाएंज्योति, राजनीति में सोने और चांदी के सुनहरी और सफ़ेद रंग हैं, खून का लाल रंग है और काले कारनामों का काला रंग है.
हटाएंसटीक, सामयिक और करारा व्यंग ...
जवाब देंहटाएंमेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिगंबर नासवा जी.
हटाएंसही कहा आपने एकदम.. जमीर सुलाकर ही भाग्य जगता...
जवाब देंहटाएंज़मीर सुलाओ और विवेक का तो खून ही कर दो. बस, फिर ऊंची से ऊंची कुर्सी तक पहुँच जाओ.
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